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________________ ( ४३ sh च 1 at a अब अच का र्द्ध छेद हो जाता है । ये तो रात्रिभोजन के प्रगट दोष हैं; इनके अतिरिक्त और भी बहुत दोष हैं, जिनका वर्णन | यथास्थान है ही । इतना ही नहीं और भी अनेक पदार्थ हैं, जो रात्रिभोजन में सहज ही हमारे खाने-पीने में आ जाते हैं और हमारी मौत के कारण तक बन जाते हैं। ऐसी अनेक दुर्घटनाएँ आये दिन देखने-सुनने में आती हैं, जो रात्रि भोजन के कारण घटती हैं। अस्तु! | इन आकस्मिक हानियों के सिवाय कुछ हानियाँ ऐसी भी हैं, जिनका रात्रि भोजन के साथ चोली-दामन का साथ है। जैसे - सूर्यास्त होने पर जठराग्नि का मन्द हो जाना, पाचन प्रणाली पर विपरीत प्रभाव पड़ना । र्थं वैद्यक शास्त्र अर्थात् आयुर्वेद में उदर स्थित आहार की थैली को जो कमलनाड कहा है, वह सर्वथा सार्थक है; क्योंकि जिसप्रकार कमल पुष्प सूर्यप्रकाश में ही खिलता है, विकसित होता है, प्रफुल्लित होता है, उसीप्रकार उदर स्थित कमलनाड भी अर्थात् आहारथैली भी सूर्यप्रकाश में पूर्णत: खुली और सक्रिय | रहती है तथा सूर्यास्त होते ही कमल के फूल की भांति ही उदर स्थित कमलनाड (आहारथैली) भी संकुचित हो जाती है, निष्क्रिय हो जाती है। दोनों में यह समानता देखकर ही संभवत: वैद्यक शास्त्रों में अहार थैली को कमलनाड नाम दिया जायेगा। इसप्रकार आयुर्वेद व चिकित्साविज्ञान के अनुसार रात्रि में किया गया भोजन ढंग से पचता नहीं है, जिससे धीरे-धीरे अनेक उदरविकार भी हो जाते हैं। पशु दो प्रकार के होते हैं एक दिनभोजी, दूसरे - रात्रिभोजी । उनमें एक विशेषता यह होती है कि जो रात में खाते हैं, वे दिन में नहीं खाते और जो दिन में खाते हैं वे रात में नहीं खाते। वे अपने नैसर्गिक (प्राकृतिक) नियमों का लोप नहीं करते। पर यह समझ में नहीं आता कि इस मनुष्य को किस श्रेणी में रखा जाय, जो दिन में भी खाता है और रात्रि में भी ? कोई कह सकता है कि पालतू जानवर भी तो दिनरात कभी भी खाते हैं ? हाँ खाते हैं, पर उनकी बात जुदी है, वे मानव के सत्संग में जो आ गये हैं, वे - र अ भि न न्द न ना थ पर्व
SR No.008375
Book TitleSalaka Purush Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size1 MB
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