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बिजली के बल्बों पर, ट्यूबलाइटों पर एवं दीपक आदि के ऊपर पतंगा आदि को उछलते-गिरते पड़ते श || और मरते किसने नहीं देखा ? सूर्यास्त होने पर मच्छरों का जो बोलबाला होता है, उससे तो बच्चा-बच्चा
परिचित है ही। जहाँ देखो, वहीं ढेरों मच्छर भिन-भिनाते मिल जायेंगे। । रात्रि में भोजन बनाने के लिए जो आग जलाई जाती है, उससे आकर्षित होकर भी छोटे-छोटे जीव| जन्तु भोजन सामग्री में गिरते-पड़ते रहते हैं। उन सबके घात से हिंसा जैसा महापाप तो होता ही है, अनेक शारीरिक भयंकर व्याधियाँ बीमारियाँ भी हो जाती हैं। पंचमकाल के जीवों को उद्बोधन हेतु निशिभोजन जन कथा में लिखा जायेगा -
कीड़ी बुध बल हरै, कंपरोग करै कसारी।
मकड़ी कारण कुष्ट रोग उपजै अतिभारी ।। कीड़ी (चींटी) बुद्धिबल को क्षीण करती है, कसारी नामक कीड़ा कम्प रोग पैदा करता है, मकड़ी से कुष्ट रोग होता है। रात्रि में भोजन बनाते एवं खाते समय इनके गिर जाने की अधिक संभावना है, अत: रात्रि भोजन त्याज्य है।
जुआ जलोदर जनै, फांस गल व्यथा बढ़ावै।
बाल करे स्वर भंग, वमन माखी उपजावै ।। तालु छिदत बिच्छू भखत, और व्याधि बहु करई थल।
ये प्रगट दोष निसि असन के, परभव दोष परोक्ष फल ।। नामक कीड़ा, जो वालों में होता है, उसके पेट में चले जाने से जलोदर नामक रोग हो जाता है। गले में फांस लगी हो - ऐसी पीड़ा होती है। यदि पेट में बाल चला जाये तो कंठ का स्वर भंग हो जाता है। मक्खी पेट में जाते ही वमन (उल्टी) हो जाती है। यदि बिच्छू पेट में पहुँच जाय तो तालु में छेद हो | जाता है। मक्खी पेट में जाते ही वमन (उल्टी) हो जाती है। यदि बिच्छू पेट में पहुँच जाय तो तालु में |
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