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शुभ में जीत अशुभ में हार यही है द्यूतकर्म, देह में मगनताई यही मांस भखिवो।। मोह की गहल सों अजान यही सुरापान, कुमति की रीति गणिका को रस चखिवो।। निर्दय है प्राण घात करबौ यहै शिकार, पर नारी संग परबुद्धि को परखिवौ।।
प्यार सों पराई चीज गहिवै की चाह चोरी, ऐ ही सातों व्यसन विडार ब्रह्म लखिवौ।। दिव्यध्वनि में आया - नाटक समयसार पंचमकाल के कम क्षयोपशम ज्ञानवालों सरल भाषा में लिखा | गया सर्वोत्तम ग्रन्थ होगा। इसे पढ़-सुन कर लाखों लोग अपना कल्याण करेंगे।
पहले बुरे व्यसन त्यागने की बात कही जाती है। जब जीव पाप प्रवृत्तिरूप दुर्व्यसनों का त्याग कर देता है तो फिर पुण्यबंध के कारणरूप आदतों को भी छुड़ाकर सभीप्रकार की आदतें छुड़ाई जाती हैं, क्योंकि | आदत तो कोई भी अच्छी नहीं होती।
पुनः प्रश्न किया - "हे प्रभो ! वर्तमान में रात्रि भोजन की प्रथा बहुत बढ़ गई है ? घरों में तो लोग || रात्रि भोजन करते ही हैं, सामूहिक भोज भी अधिकांश रात में ही होते हैं। अत: रात्रिभोजन में क्या-क्या दोष हैं, क्यों नहीं करना चाहिए यह बताकर कृतार्थ करें।"
दिव्यध्वनि में समाधान हुआ - "हे भव्य! रात्रिभोजन में प्रत्यक्ष में ही भारी दोष दृष्टिगोचर होते हैं, उन पर गंभीरता से विचार करके रात्रिभोजन का त्याग करो। रात्रि भोजन त्याग से इहभव में तो हम नाना बीमारियों से बचेंगे ही, पुनर्जन्म में भी सभी प्रकार के उत्तमोत्तम सुखों की प्राप्ति होगी।"
जो व्यक्ति रात्रि में भोजन करता है, उसके निमित्त से रात्रि में भोजन बनाना भी पड़ता है और रात्रिमें भोजन बनाने से दिन की अपेक्षा अनेकगुणी अधिक हिंसा होती है; क्योंकि रात्रि में सूक्ष्म जीवों का संचार अधिक होता है, दिन में जो जीव-जन्तु सूर्य के प्रकाश व प्रपात के कारण सोये रहते हैं, घर के अंधेरे कोने में बैठे रहते हैं, वे सूर्यास्त होते ही अपना भोजन ढूढ़ने के लिए निकल पड़ते हैं। इधर-उधर संचार करते हुए कीड़े-मकोड़े एवं उड़नेवाले सूक्ष्मजीव हमें रात में सहजता से दिखाई नहीं देते । यदि हम गौर से देखें तो उनमें से बहुत कुछ दिख भी जाते हैं।
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