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________________ ४४ बेचारे पराधीन हो गये हैं। जब यह स्वार्थी मानव उन्हें दिन में भरपेट खाने को देगा ही नहीं तो उन्हें मजबूर होकर रात में खाना ही पड़ेगा । श ला का आयुर्वेद व शरीरविज्ञान के नियमानुसार मानव को सोने के ४-५ घंटे पहले भोजन कर ही लेना चाहिए, | तभी वह स्वस्थ रह सकता है। खाकर तुरन्त सो जाने से पाचन नहीं होता, जिससे अनेक बीमारियाँ हो जाती हैं। अहिंसाधर्म का पालन करने की दृष्टि से भी जैन व जैनेतर सभी शास्त्रों में रात्रिभोजन के त्याग पर बहुत जोर दिया जायेगा । sl lब अब अहिंसाव्रतं रक्षार्थं, मूलव्रत विशुद्धये । निशायां वर्जयेत् भुक्तिं, इहामुत्र च दुःखदाम् ।। अहिंसाव्रत की रक्षा और आठ मूलगुणों की निर्मलता के लिए तथा इस लोक संबंधी रोगों से बचने | के लिए एवं परलोक के दुःखों से बचने के लिए रात्रिभोजन का त्याग कर देना चाहिए । रात्रि भोजन में हिंसा की अनिवार्यता सिद्ध करते हुए कहा गया है कि रात्रि में भोजन करनेवालों को हिंसा अनिवार्य होती है। रात्रिभोजन त्यागे बिना वह किसी भी हालत में उस हिंसा से बच नहीं सकता । | इसलिए अहिंसाप्रेमियों को या हिंसा से विरक्त पुरुषों को रात्रिभोजन का त्याग करना चाहिए । सूर्य के प्रकाश बिना रात में भोजन करनेवाला मनुष्य जलते हुए दीपक में भी भोजन में मिले हुए सूक्ष्म जीवों की हिंसा कैसे टाल सकता है ? रात्रिभोजी मनुष्य द्रव्य व भाव दोनों प्रकार की हिंसाओं से बच ही नहीं सकता; अत: अहिंसा का पालन करनेवालों को रात्रिभोजन त्यागना अनिवार्य है । जिसमें राक्षस, भूत और पिशाचों का संचार होता है, जिसमें सूक्ष्म जन्तुओं का समूह दिखाई नहीं देता, | जिसमें स्पष्ट न दिखने से त्यागी हुई वस्तु भी भोजन में आ जाती है। जिसमें साधुओं का संगम नहीं होता, जिसमें देव - गुरु की पूजा नहीं की जाती, जिसमें जीवित खाया गया भोजन संयम और स्वास्थ्य विनाशक | होता है, जिसमें जीवित जीवों के भोजन में गिर जाने की संभावना रहती है, जिसमें सभी शुभकार्यों को ती र्थं अ भि न्द न ना थ पर्व
SR No.008375
Book TitleSalaka Purush Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size1 MB
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