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| रानियाँ जरत्कुमार को आगे कर सेना के साथ दुःख से पीड़ित बलदेव को देखने के लिए चल दिये। कुछ दिनों में वे उसी वन में पहुँचे। वहाँ बलदेव दिखाई पड़े। वे उस समय श्रीकृष्ण के मृत शरीर को उबटन लगाकर उसका श्रृंगार कर रहे थे। यह देखकर पाण्डव शोक से आधीर होकर उनसे लिपट गये
और रोने लगे। तब माता कुन्ती ने और पाण्डवों ने बलदेव से श्रीकृष्ण का दाह संस्कार करने की प्रार्थना | की। किन्तु बलदेव यह सुनते ही आग बबूला हो गये। वे प्रलाप करते हुए श्रीकृष्ण के निष्प्राण शरीर
को गोद में लेकर निरुद्देश्य चल दिये; किन्तु पाण्डवों ने उनका साथ नहीं छोड़ा, वे भी उनके पीछे-पीछे चलते रहे।
बलदेव का भाई सिद्धार्थ जो सारथी था। मरकर स्वर्ग में देव हुआ था तथा जिससे दीक्षा लेने के समय बलदेव ने यह वचन ले लिया था कि “यदि मैं मोहग्रस्त हो जाऊँ तो तुम मुझे उपदेश देकर मार्गच्युत होने से बचाओगे।" वह देव बलदेव की इस मोहान्ध अवस्था को देखकर अपना रूप बदलकर एक रथ पर बैठकर बलदेव के सामने आया। रथ पर्वत के विषम मार्ग पर तो टूटा नहीं, किन्तु समतल भूमि में चलते ही टूट गया। वह रथ को ठीक कर रहा था, किन्तु वह ठीक ही नहीं होता था। यह देखकर बलदेव बोले - "भ्रद! तेरा रथ पर्वत के ऊबड़-खाबड़ मार्ग पर टूटा नहीं, किन्तु समतल मार्ग पर टूट गया, यह बड़ा आश्चर्य है। अब यह ठीक नहीं हो सकता, इसे ठीक करना व्यर्थ है। देव ने बलदेव को आश्चर्य मुद्रा में देखकर कहा - "महाभारत युद्ध में जिन महारथी कृष्ण का बाल बांका नहीं हुआ, वे जरत्कुमार के एक साधारण बाण से इस दशा में पहुँच सकते हैं तो रथ समतल भूमि में क्यों नहीं टूट सकता ? ___ बलदेव उसकी बात की उपेक्षा करके आगे बढ़ गये। आगे जाने पर उन्होंने देखा - एक व्यक्ति शिलातल पर कमलिनि उगाने का प्रयत्न कर रहा है। यह देखकर बलदेव बोले - "क्यों भाई! क्या शिलातल पर भी कमलिनी उग सकती है ?" देव जैसे इसी प्रश्न के लिए ही बैठा था - "आप ठीक कहते हैं, पाषाण के ऊपर तो कमलिनी नहीं उग सकती है, किन्तु निर्जीव शरीर में कृष्ण पुनः जीवित हो उठेंगे?"
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