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उन्हें जलाशय दिखाई पड़ा। वे जलाशय पर पहुँचे और कमल-दल का पात्र बनाकर जल भरकर ले गए। || उन्होंने देखा श्रीकृष्ण वस्त्र को ओढ़कर सो रहे हैं। उन्होंने विचार किया - "संभवतः थक जाने से सुख ला | निद्रा में सो रहा है। इसे स्वयं ही जागने दिया जाय।" जब बहुत देर हो गई और श्रीकृष्ण नहीं जागे तो
| उन्होंने धीरे से कहा - "वीर! इतना अधिक क्यों सो रहे हो? निद्रा छोड़ो और उठकर यथेच्छ जल पिओ।"
| इतना कहने पर भी जब श्रीकृष्ण की निद्रा भंग नहीं हुई। तभी बलराम ने देखा कि एक बड़ी मक्खी रुधिर रु | की गन्ध से कृष्ण के ओढ़े हुए वस्त्र के भीतर घुस गई है; किन्तु निकलने का मार्ग न पाने से व्याकुल है।
उन्होंने श्रीकृष्ण का मुख उघाड़ दिया। मृत दशा में उनके मुख से आर्त वाणी निकली, वे अचेत होकर गिर पड़े। सचेत होने पर वे श्रीकृष्ण के शरीर पर हाथ फेरने लगे। तभी उनकी दृष्टि पैर के व्रण (घाव) पर पड़ी, जिसके रुधिर से वस्त्र रक्त वर्ण हो गया था। उन्हें निश्चय हो गया कि सोते समय किसी ने इनके | पैर में बाण से प्रहार किया है। वे भयंकर गर्जना करते हुए कहने लगे - “किस अकारण शत्रु ने मेरे सोते हुए भाई पर प्रहार किया है, वह मेरे सामने आये।" किन्तु उनका गर्जन-तर्जन निष्फल रहा, कोई भी उनके समक्ष उपस्थित नहीं हुआ।
निरुपाय वे पुनः श्रीकृष्ण को गोद में लेकर करुण विलाप करने लगे। वे मोहान्ध होकर बारबार श्रीकृष्ण को जल पिलाने लगे। कभी वे जल से उनका मुख धोते, कभी उन्हें चूमते, कभी उनका सिर सूंघते। फिर अनर्गल प्रलाप करने लगते। फिर वे श्रीकृष्ण के शव को लेकर वन में यूँ ही भ्रमण करने लगे।
जरत्कुमार श्री कृष्ण के आदेशानुसार पाण्डवों की सभा में पहुँचा और अपना परिचय दिया। तब युधिष्ठिर ने उससे स्वामी की कुशल-वार्ता पूछी। जरत्कुमार ने अवरुद्ध कंठ से द्वारिका-दाह तथा अपने निमित्त से श्रीकृष्ण के निधन के करुण समाचार सुनाये और विश्वास दिलाने के लिए श्रीकृष्ण की दी हुई कौस्तुभ मणि दिखायी। ये हृदय विदारक समाचार सुनते ही पाण्डव और उनकी रानियाँ, जरत्कुमार और उपस्थित सभी जन रुदन करने लगे। जब रुदन का वेग कम हुआ तो पाण्डव, माता कुन्ती, द्रौपदी आदि
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