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________________ AREEF F IFE 19 के महापाप से बचने के लिए मैं बारह वर्ष से इस वन में रह रहा हूँ। मुझे अपना अनुज कृष्ण प्राणों से भी | प्यारा है। इसलिए मैं इतने समय से इस एकान्त में जन-जन से बहुत दूर रह रहा हूँ। मैंने इतने समय से किसी आर्य का नाम भी नहीं सुना। आप कौन हैं ? उत्तर मिला - "मैं कृष्ण हूँ, तुम शीघ्र आओ।" जरत्कुमार को ज्ञात हो गया कि यह मेरा भाई कृष्ण ही है। उसने धनुष-बाण दूर फेंक दिया और श्रीकृष्ण के चरणों में गिरकर अश्रु बहाने लगा। श्रीकृष्ण ने उसे उठाकर गले से लगाया और सान्त्वना देते हुए वे बोले 'भाई! शोक न करें, भवितव्य अलभ्य है। आपने राजवैभव छोड़कर वन में निवास स्वीकार किया, किन्तु दैव के आगे सब व्यर्थ होता है। भगवान नेमीनाथ की दिव्यध्वनि में यह घोषणा हो ही चुकी थी, तदनुसार तुमने लाख प्रयत्न किए परन्तु...।" श्रीकृष्ण द्वारा समझाने पर भी जरत्कुमार विलाप करता रहा । श्रीकृष्ण बोले - "आर्य! बड़े भाई बलराम मेरे लिए जल लाने गये हैं। उनके आने से पूर्व ही आप यहाँ से चले जायें। संभव है, वे आपके ऊपर क्षुब्ध हों। आप पाण्डवों के पास जाकर उन्हें सब समाचार दें। वे हमारे प्रियजन हैं। वे आपकी रक्षा अवश्य करेंगे।" इतना कहकर उन्होंने जरत्कुमार को परिचय के लिए कौस्तुभ मणि | दे दी और विदा कर दिया। यद्यपि श्रीकृष्ण ने अत्यन्त शान्त भाव से उसे सहन करने का प्रयत्न किया, पंच-परमेष्ठियों को नमस्कार करके भगवान नेमिनाथ का स्मरण भी किया; परन्तु होनहार के अनुसार प्यास और बाण की वेदना से/ पीड़ा चिंतन से उनका देहान्त हो गया। इसके पहले उन्होंने विश्वहित की भावना से तीर्थंकर पुण्य प्रकृति का बंध कर लिया था। जिसके फलस्वरूप वे इसी भरत क्षेत्र की आगामी चौबीसी में निर्मल नाम के सोलहवें तीर्थंकर होंगे। स्नेहाकुल बलराम अपने तृषित भाई के लिए जल की तलाश में बहुत दूर निकल गये, किन्तु कहीं जल नहीं मिल रहा था। मार्ग में अपशकुन हो रहे थे, किन्तु उनका ध्यान एकमात्र जल की ओर था। जल मिल नहीं रहा था, विलम्ब हो रहा था, उधर उनके मन में चिन्ता का ज्वार बढ़ता जा रहा था। मेरा प्यारा भाई प्यासा है, न जाने प्यास के कारण उसकी कैसी दशा होगी? तब उन्होंने वेग से दौड़ना प्रारम्भ कर दिया, उनकी दृष्टि जल की तलाश में चारों ओर थी। पर्याप्त विलम्ब और दूरी के बाद 8 FNFFFFFFFF /२५
SR No.008375
Book TitleSalaka Purush Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size1 MB
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