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(३७७|| तब इसने भक्ति में व्यवधान न आये, इसलिए अपनी बाहु की नस खींचकर वीणा में लगा ली और उस ||
अनवरत बजाता रहा। ॥ रेवानदी में जलक्रीड़ा करते हुए विद्याधर राजा सहस्ररश्मि द्वारा बंधा हुआ पानी छोड़ देने से इसकी | जिन-पूजा में व्यवधान हुआ। इसने सहस्ररश्मि को पकड़ कर बन्दी बना लिया, किन्तु सहस्ररश्मि के पिता
मुनि शतबाहु का सम्बोधन पाकर सहस्त्र रश्मि को अपना मित्र बनाकर इसने छोड़ दिया था। | इसने प्रतिज्ञा की थी कि “जो पर स्त्री मुझे नहीं चाहेगी मैं उसे पत्नी के रूप में ग्रहण नहीं करूँगा" सागरबुद्धि निमित्तज्ञानी से दशरथ के पुत्र और जनक की पुत्री को अपने मरण का हेतु जानकर रावण ने दशरथ और जनक को मारने के लिए विभीषण को आज्ञा दी थी। नारद से यह समाचार जानकर दशरथ और जनक नगर से बाहर चले गये थे और उनके मंत्री ने दशरथ की प्रतिकृति बनवाकर सिंहासन पर रख दी थी। विभीषण द्वारा भेजे गये वीरों ने इस प्रतिकृति को दशरथ समझकर उसका शिरच्छेद कर दिया था। विभीषण ने सिर को पाकर दशरथ को मरा जानकर संतोष कर लिया था।
लक्ष्मण के साथ दश दिन तक युद्ध होने के बाद रावण को बहुरूपिणी विद्या का प्रयोग करना पड़ा। इसमें भी जब वह सफल नहीं हुआ तब इसने लक्ष्मण पर चक्ररत्न चलाया, लक्ष्मण अबाधित रहा। चक्ररत्न प्राप्त कर लक्ष्मण ने मधुर शब्दों में इससे कहा था कि सीता को वापस कर दे और अपने पद पर आरूढ़ होकर लक्ष्मी का उपभोग कर, पर यह मान वश ऐंठता रहा। अन्त में लक्ष्मण ने उसी चक्र को चलाकर रावण का वध कर दिया।
९. बलराम, कृष्ण और जरासंघ बलराम :- बलराम रोहणी के उदर से उत्पन्न हुए वसुदेव के पुत्र थे। वे नवम बलभद्र थे। उन्हें बलदाऊ, बलदेव या बलराम भी कहते हैं। देवकी के उदर से सातवें पुत्र श्री कृष्ण का जन्म होते ही उनके बड़े भाई बलराम ने कृष्ण को कंस से सुरक्षा हेतु गोकुल में ले जाकर नन्दगोप और यशोदा को सौंप दिया और स्वयं || पर्व ॥ भी गोकुल, मथुरा और द्वारिका में कृष्ण के साथ ही रहे । जब द्वैपायन मुनि द्वारिका आये तो शम्ब आदि || २७
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