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________________ सम्बोधा तथा सम्यग्दर्शन प्राप्त कराया। ये तीर्थंकर होकर आगे निर्वाण प्राप्त करेंगे। AREEF F IFE 19 दशानन :- रावण लंका का स्वामी, आठवाँ प्रतिनारायण था। यह अलंकारपुर नगर के निवासी तथा राजा रत्नश्रवा और रानी केकसी का पुत्र था। इसके गर्भ में आते ही माता की चेष्टाएँ अत्यन्त क्रूर हो गई थीं। हजार नागकुमारों से रक्षित मेघवाहन के कंठ के हार को रावण ने बाल्यावस्था में ही खींच लिया था। उस हार के पहिनाये जाने पर उसमें गुथे रत्नों में मुख्य मुख के सिवाय नौ मुख और भी प्रतिबिम्बित होने लगते थे। इसकारण रावण दशानन नाम से सम्बोधित किया गया। ॥ विद्याधर की पुत्री मन्दोदरी से इसने विवाह किया था। इसके अतिरिक्त इसने अन्य अनेक कन्याओं | | को गन्धर्व विधि से विवाहा था । वैश्रवण को जीतकर इसने उसका पुष्पक विमान प्राप्त किया। सम्मेदाचल के पास संस्थलि नामक पर्वत पर इसने त्रिलोकमण्डन हाथी पर विजय प्राप्त कर अपना अभूतपूर्व पौरुष प्रदर्शित किया था। खरदूषण के द्वारा अपनी बहिन चन्द्रनखा का अपहरण होने पर भी बहिन के भविष्य का विचार कर यह शान्त रहा और इसने खरदूषण से युद्ध नहीं किया। इसने बाली को अपनी आधीन करना चाहा था, किन्तु बाली ने जिनेन्द्र के सिवाय किसी अन्य को नमन न करने की प्रतिज्ञा कर ली थी। प्रतिज्ञा भंग न हो और हिंसा भी न हो एतदर्थ वह संसार से विरक्त होकर मुनिधर्म में दीक्षित हो गया था। बाली के भाई सुग्रीव ने अपनी श्रीप्रभा बहिन देकर इससे सन्धि कर ली थी। अपने पुष्पक विमान की गति रुकने का कारण मुनिराज बाली को जानकर वह क्रोधाग्नि से जल उठा था। इसने बाली सहित कैलाश पर्वत को उठाकर समुद्र में फेंकना चाहा था, कैलाश पर्वत इसके बल से चलायमान भी हो गया था, किन्तु मन्दिरों की सुरक्षा हेतु कैलाश को सुस्थिर रखने के लिए बाली मुनि ने अपने पैर के अंगूठे से जरा-सा पर्वत दबा दिया था। इससे उत्पन्न कष्ट से इसने इतना चीत्कार किया कि समस्त वनप्रान्त चीत्कार के उस महाशब्द से रोने लगा। कालान्तर में जगत को रुला देनेवाले इसी चीत्कार के कारण उसे 'रावण' नाम से संबोधित किया जाने लगा। यह जिनेन्द्र भक्त था। भक्ति की तल्लीनता में जब बजाते-बजाते वीणा का तार टूट गया || २५ EFFFFFFFFFF
SR No.008375
Book TitleSalaka Purush Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size1 MB
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