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________________ (३७५ श ला का पु रु ष pm F F 90 उ त्त रा र्द्ध कोटिशिला को अपनी भुजाओं से घुटनों तक उठाया था। रावण से युद्ध करने ये राम के साथ लंका गये थे। लंका पहुँचने पर सुग्रीव और हनुमान ने उन्हें और राम को अपने द्वारा सिद्ध की हुई गरुड़वाहिनी, सिंहवाहिनी, बन्धमोचिनी और हननावरणी ये चार विद्याएँ दी थीं। रावण के साथ हुए युद्ध में रावण ने बहुरूपिणी विद्या का प्रयोग किया । लक्ष्मण ने उसे भी नष्ट कर दिया। अन्त में रावण ने उन्हें मारने के लिए चक्र चलाया। चक्र उनकी प्रदक्षिणा देकर उनके हाथ में आकर | स्थिर हो गया। इसी चक्र के प्रहार से उन्होंने रावण को मार गिराया। इसके पश्चात् विभीषण के निवेदन पर वे भी राम के साथ लंका में छह वर्ष तक रहे। लंका से लौटते समय अनेक राजाओं को जीता। विद्याधर राजा भी उनके अधीन हुए, इसी समय वे नारायण पद को प्राप्त हुए । चक्र, छत्र, धनुष, शक्ति, गदा, मणि और खडग ये सात रत्न भी उन्हें इसी समय प्राप्त हुए। उन्होंने सोलह हजार पट्टबन्ध राजाओं और एक सौ दश नगरियों के स्वामी विद्याधर राजाओं को अपने आधीन किया था। उनकी यह विजय बयालीस वर्ष में पूर्ण हुई थी। इनकी सत्रह हजार रानियाँ थीं। इनके कुल ढाई सौ पुत्र थे । राम के द्वारा किये गये सीता | के परित्याग को उन्होंने उचित नहीं समझा। परन्तु अर्द्धचक्रवर्ती होते हुए भी बड़े भाई का सम्मान रखते हुए राम के आदेश से आगे ये कुछ कह नहीं सके । परिचय के अभाव में अज्ञात अवस्था में उन्होंने अनंगलवण और मदनांकुश से भी युद्ध किया और यह विदित होते ही कि ये राम के पुत्र हैं, उन्होंने युद्ध छोड़कर उन दोनों का स्नेह से आलिंगन किया था । राम-लक्ष्मण दोनों भाइयों के प्रगाढ़ स्नेह की चर्चा एक दिन इन्द्रसभा में हुई । उसकी परीक्षा करने के लिए रत्नचूल और मृगचूल नाम के दो देव अयोध्या आये। विक्रिया से अन्तःपुर में रुदन का शब्द करा दिया तथा कोई पुरुष जाकर लक्ष्मण से बोला - हे देव! राम की मृत्यु हो गई है, बस इतना सुनते ही 'हाय यह क्या हुआ ?' ऐसा कहते हुए लक्ष्मण के प्राण-पखेरु उड़ गये । इसतरह लक्ष्मण की मृत्यु हुई। मरण को | प्राप्त कर ये बालुकाप्रभा (चौथी भूमि) में उत्पन्न हुए। सीता के जीव ने स्वर्ग से इस भूमि में जाकर इन्हें ब ल भ द्र ना रा य ण प्र ति ना य ण पर्व २५
SR No.008375
Book TitleSalaka Purush Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size1 MB
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