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३७४ | लिए घूम रहे हैं," इसप्रकार देव के वचनों से राम का मोह शिथिल हो गया, वे स्वयं अपनी इस चेष्टा पर
लज्जित हो उठे और उन्होंने लक्ष्मण का दाह संस्कार कर दिया। राम स्वयं भी इस घटना से संसार से विरक्त हो गये। पुत्रों को राज्यसत्ता सौंप कर मुनि हो गये।
एक दिन मुनिराज राम जब कोटिशिला पर ध्यानारूढ़ थे। सीता का जीव जो कि अच्युत स्वर्ग में स्वयंप्रभ प्रतीन्द्र हुआ था। उसने पूर्व जन्म के अनुराग से विचारा कि “यह महामुनि श्रीराम ध्यान द्वारा कर्मनाश करने में उद्यत हैं, यदि मैं इन्हें ध्यान से विचलित करूँ तो यह भी देव होवेंगे। इससे हम दोनों मिलकर स्वर्ग में रहेंगे, नंदीश्वर आदि की वन्दना करेंगे।” मोहवश इसप्रकार विचार कर सीता का रूप बनाकर उसने राम मुनिराज को ध्यान से विचलित करने का प्रयत्न किया; किन्तु सुमेरु के सदृश अचल राम का मन किंचित् भी चलायमान नहीं हुआ। इस तरह तपश्चरण करते हुए रामचन्द्र मुनि को तीन सौ पंचानवे वर्ष बाद माघ शुक्ला द्वादशी को घातिया कर्म के क्षय हो जाने से केवलज्ञान प्राप्त हुआ और छह सौ वर्ष बाद फाल्गुन शुक्ला त्रयोदशी को शेष कर्मों का क्षय हो जाने से वे तुंगीगिरि से मुक्त हुए।
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नारायण अर्द्धचक्री लक्ष्मण :- लक्ष्मण दशरथ की दूसरी रानी सुमित्रा के पुत्र थे। माघ शुक्ल प्रतिपदा के दिन उनका जन्म हुआ था। उनकी कुल आयु बारह हजार वर्ष की थी। वे वज्रवृषभनाराच संहनन और समचतुरस्र संस्थान के धारी थे। उनकी नील कमल के समान शारीरिक कान्ति थी। अयोध्या गणराज्य के स्वामी राम उनके बड़े भाई और भरत तथा शत्रुघ्न छोटे भाई थे। वनवास के समय उन्होंने उजयिनी के राजा सिंहोदर को परास्त किया और व्रती श्रावक वज्रकर्ण की उस सिंहोदर नामक राजा से मित्रता कराई थी। सिंहोदर ने भी उन्हें कन्यायें दी थीं। ___ वंशस्थल-पर्वत पर उन्हें सूर्यहास-खड़ग मिला। इससे उन्होंने शम्बूक को और उसके पिता खरदूषण | को मारा था। जगत्पाद पर्वत पर सात दिन निराहार रहकर उन्होंने प्रज्ञप्ति-विद्या सिद्ध की थी। उन्होंने २५