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|| लोकापवाद के कारण राम द्वारा सीता का पुनः वनवास हुआ। वन से सीता के लौटने पर राम ने सीता
की अग्नि-परीक्षा भी ली; किन्तु लोकापवाद नहीं रुका और इन्हें सीता का परित्याग करना न्यायोचित प्रतीत हुआ। सेनापति कृतान्तवक्र को आदेश देकर इन्होंने गर्भवती होते हुए भी सीता को तीर्थ वन्दना करने | के बहाने सिंहनाद नाम की भयंकर निर्जन अटवी में भिजवा दिया। इस स्थिति में भाग्य पर विश्वास और | धैर्य धारण करती हुई सीता ने सेनापति के द्वारा राम को सन्देश भेजा कि वे प्रजा का न्यायपूर्वक पालन करें और धर्म को किसी भी हालातों में न छोड़ें। हर परिस्थिति का सामना करते हुए मेरी भाँति धर्म से मुँह न मोड़े। वन में सीता के अनंगलवण और मदनांकुशल दो पुत्र हुए। इनसे राम को युद्ध भी करना पड़ा।
सौधर्म इन्द्र देवों की सभा में विराजमान धर्मचर्चा कर रहे थे। अनेकों धर्म चर्चाओं के मध्य राम और लक्ष्मण के परस्पर के स्नेह की चर्चा हुई। इस चर्चा को सुनकर कुतूहलवश परीक्षा करने के लिए रत्नचूल
और मृगचूल नामक दो देव अयोध्या गये। विक्रिया से अन्त:पुर में रुदन का शब्द करा दिया तथा अन्त:पुर में जाकर लक्ष्मण से बोला - “हे देव! राम की मृत्यु हो गई है' बस इतना सुनते ही 'हाय यह क्या हुआ?" ऐसा कहते हुए लक्ष्मण के प्राण निकल गये। यह दृश्य देख दोनों देव विषाद से भरे हुए स्वर्ग लोक वापिस चले गये । इस घटना से अन्त:पुर में शोक छा गया। जब रामचन्द्र वहाँ आये तो लक्ष्मण के मृतक देह के चिह्न सब ओर से स्पष्ट दिख रहे थे, फिर भी मोह से मुग्ध हुए राम उसे जीवित समझ रहे थे। छह मास तक लक्ष्मण के मृतक शरीर को लिए पागलवत् चेष्टा करते रहे। इसी मध्य सीता के दोनों पुत्रों ने संसार से विरक्त होकर पिता के चरणों को नमस्कार करके वन में जाकर दीक्षा ले ली। अनेक इष्ट मित्रों और राजाओं के समझाने पर भी रामचन्द्र का मोह भंग नहीं हुआ। उस समय कृतांतवक्र सेनापति और जटायु के जीव, जो कि स्वर्ग में देव हुए, वे दोनों राम को समझाने के लिए आए उनमें से एक देव मृतक शरीर को कन्धे पर लेकर खड़ा हो गया। राम उसे समझाने लगे, तब उसने कहा - "देव! आप भी तो मुर्दे को | २५
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