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| के लंका से लौटकर आने और सीता के कुशल समाचार लाने से प्रसन्न होकर श्रीराम ने हनुमान को अपना सेनापति और सुग्रीव को युवराज बनाया। लंका नगरी और रावण का नाम सुनकर विद्याधर घबरा गये । | तत्पश्चात् वह सभी विद्याधर यह कहकर सहयोग देने को तत्पर होते हैं कि " रावण की मृत्यु कोटि शिला उठानेवाले के द्वारा होगी" - ऐसा अनन्तवीर्य मुनीन्द्र ने कहा था सो यदि आप कोटि शिला उठा सकें तो हम रावण के साथ युद्ध करने के लिए उद्यत हो सकते हैं।
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लक्ष्मण ने उस शिला को हिलाकर अपनी भुजाओं से घुटनों तक उठा कर सभी का संशय दूर किया । | हर्ष सहित वह सभी वापस आये। फिर राम ने पुन: हनुमान को लंका भेजकर विभीषण को सन्देश भेजा कि वह रावण को समझाये । हनुमान ने लंका जाकर राम का सन्देश दिया । तदनुसार विभीषण ने रावण को समझाया। रावण यह सुनकर कुपित हो गया और उसने हनुमान का निरादर किया। जिससे क्रुद्ध होकर हनुमान ने लंका नगरी और वहाँ के उद्यानों को नष्ट-भ्रष्ट कर दिया । वनपालों और वीर सुभटों को मार र्द्ध गिराया । लंका नगरी के तहस-नहस हो जाने से रावण और भी अधिक कुपित हुआ । पश्चात् हनुमान शीघ्र ही लंका से वापस आये और उन्होंने राम से यथावत् सर्व वृतान्त कहा। रावण के द्वारा हनुमान के साथ य हुए प्रतिकूल व्यवहार से रुष्ट होकर विभीषण भी श्रीराम का पक्षधर हो गया। परस्पर युद्ध हुआ । युद्ध | लक्ष्मण ने चक्र चलाकर रावण का वध किया। युद्ध में राम की विजय हुई |
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मन्दोदरी तथा शूर्पनखा आदि ने आर्यिका के व्रत ग्रहण किये। लंका की अशोक वाटिका में श्रीराम और सीता के मिलने पर देवों ने पुष्पवृष्टि की। लंका में लक्ष्मण और सीता के साथ श्रीराम छह वर्ष तक रहे। पश्चात् वहाँ का राज्य विभीषण को सौंपकर अयोध्या आये । अयोध्या आकर इन्होंने माताओं को प्रणाम किया, कुशलक्षेम पूछी। माताओं ने इन्हें आशीर्वाद दिया । इनके आते ही भरत दीक्षित हो गये । श्रीराम ने अयोध्या का राज्यपद संभाला ।
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