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________________ BREEFFFFy होना होगा। इसलिए जो मरण से डरते हैं उन्हें उससे भी पहले आयुकर्म को ही जीतना होगा। फिर न रहेगा बांस और न बजेगी बांसुरी।" | जिसतरह यह मेघों का बना गंधर्वनगर देखते-देखते ही नष्ट हो गया उसीप्रकार संसार की समस्त सम्पदायें भी नष्ट हो जाती हैं। यह बात तो आबाल-गोपाल सभी जानते हैं। | जिस समय तीर्थंकर अभिनन्दननाथ राज्य अवस्था में यह विचार कर रहे थे। उसीसमय लोकान्तिक देवों ने आकर उनकी पूजा की एवं उनके वैराग्य की अनुमोदना करते हुए कहा - जो संसार विर्षे सुख हो तो तीर्थंकर क्यों त्यागें। काहे को शिवसाधन करते, संजम सो अनुरागें।। देवों ने भगवान का निष्क्रमण कल्याणक किया। तदनन्तर जितेन्द्रिय अभिनन्दननाथ हस्तचित्रा नामक पालकी पर आरूढ़ होकर उद्यान में आये। वहाँ उन्होंने माघ शुक्ला द्वादशी के दिन एक हजार प्रसिद्ध राजाओं के साथ जिनदीक्षा धारण कर ली। उसीसमय उन्हें मनःपर्ययज्ञान उत्पन्न होगया। दूसरे दिन आहार हेतु उन्होंने साकेत (अयोध्या) नगर में प्रवेश किया। वहाँ इन्द्रदत्त राजा ने उन्हें पड़गाह कर आहारदान दिया। पुण्योदय से उसके घर में पाँच आश्चर्य हुए। तत्पश्चात् छद्मस्थ अवस्था में उनके अठारह वर्ष मौन से आत्मसाधना करते हुए बीते। वे एक दिन दीक्षावन में असनवृक्ष के नीचे वेला का व्रत लेकर ध्यानारूढ़ हुए। पौषकृष्णा चतुर्दशी के दिन शाम के समय उन्हें केवलज्ञान हुआ। समस्त देवों ने उनके केवलज्ञान कल्याणक की पूजा कर मंगल महोत्सव मनाया। उनके वज्रनाभि आदि एक सौ तीन गणधर थे। दो हजार पाँच सौ पूर्वधारी, दो लाख तीस हजार पचास || उपाध्याय, नौ हजार आठ सौ अवधिज्ञानी, सोलह हजार केवलज्ञानी, उन्नीस हजार विक्रियाऋद्धि के धारक, ग्यारह हजार छह सौ पचास मन:पर्ययज्ञान के धारी और ग्यारह हजार प्रचण्डवादी उनके चरणों की निरन्तर वन्दना करते थे। इसतरह वे सब मिलाकर तीनलाख मुनियों के स्वामी थे। ENEY Fe
SR No.008375
Book TitleSalaka Purush Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size1 MB
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