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दत्त नाम के बलभद्र तथा नारायण हुए। उनमें से दत्त तो मरण कर पाँचवें नरक गया और नन्दिमित्र केवलज्ञानी
मंत्री का जीव चिरकालतक संसार-सागर में भ्रमण कर क्रम से विजयार्द्ध पर्वत पर स्थित मन्दरपुर नगर का स्वामी बलीन्द्र नामक विद्याधर राजा हुआ। वह नारायण के द्वारा युद्ध में मरकर नरक गया। .
८. बलभद्र राम, नारायण लक्ष्मण एवं प्रतिनारायण रावण राम :- तीर्थंकर मुनिसुव्रतनाथ के तीर्थ में हुए आठवें बलभद्र राम अयोध्या नगरी के राजा दशरथ और उनकी रानी कौशल्या के पुत्र थे। इनका नाम माता-पिता ने पद्म रखा, परन्तु लोक में ये राम के नाम से ही प्रसिद्ध हुए। दशरथ की सुमित्रा रानी का पुत्र लक्ष्मण, कैकयी रानी का पुत्र भरत और सुप्रभा रानी का पुत्र शत्रुघ्न राम के अनुज थे। राजा जनक और मयूरमाल नगर के राजा अन्तरंगतम के बीच हुए युद्ध में इन्होंने जनक की सहायता की थी, जिसके फलस्वरूप जनक ने इन्हें अपनी पुत्री जानकी (सीता) को देने का निश्चय किया। विद्याधरों के विरोध करने पर सीता की प्राप्ति के लिए वज्रावर्त धनुष चढ़ाना आवश्यक माना गया। राम ने धनुष चढ़ाकर सीता से विवाह किया था। कैकयी के द्वारा भरत के लिए राज्य माँगे जाने पर राजा दशरथ ने इनके समक्ष अपनी चिन्ता व्यक्त की। इन्होंने उनसे अपने वचन की रक्षा के लिए साग्रह निवेदन किया। राम लक्ष्मण और सीता के साथ अयोध्या का राजभवन छोड़कर वन की ओर चले गये। इनके वन-गमन करते ही शोक संतप्त पिता दशरथ ने इस स्वार्थी और असार संसार से विरक्त होकर सर्वभूतहित मुनिराज के पास मुनि दीक्षा धारण कर ली।
भरत ने राज्य शासन करना स्वीकार नहीं किया। भरत और कैकयी दोनों ने इन्हें वन से लौटकर अयोध्या आने के लिए बहुत आग्रह किया; किन्तु इन्होंने पिता की वचन-रक्षा के लिए वापिस आना उचित नहीं | समझा। वन में इन्होंने बालखिल्य को बन्धनों से मुक्त कराया। साहसगति विद्याधर की माया से परेशान सुग्रीव को इन्होंने उसकी पत्नि सुतारा प्राप्त करायी। वंशस्थल के वंशगिरी पर्वत पर देशभूषण और |
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