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६. नन्दिषेण बलभद्र, पुण्डरीक नारायण एवं निशुम्भ प्रतिनारायण | सुभौम चक्रवर्ती का शासनकाल समाप्त होते ही इक्ष्वाकुवंशी राजा वरसेन की प्रथम पत्नी लक्ष्मीमती से पुण्डरीक नामक पुत्र हुआ, जो कि तीन खण्ड का अधिपति अर्द्धचक्री राजा और नारायण पद का धारक हुआ। उनकी दूसरी पत्नी वैजयन्ती के उदर से नन्दिषेण बलभद्र हुए। बलभद्र और नारायण के भवितव्यानुसार दोनों भाइयों में परस्पर बहुत अधिक स्नेह था। | उसी काल में प्रतिनारायण पद का धारक निशुम्भ राजा हुआ। पुण्डरीक और निशुम्भ में परस्पर अनेक
पूर्व भवों से वैर-विरोध चला आ रहा था। जब उसे ज्ञात हुआ कि इन्द्रपुर के राजा इन्द्रसेन ने अपनी | पद्मावती नाम की कन्या का विवाह पुण्डरीक से कर दिया तो उसे क्रोध आया। वह बलवान और तेजस्वी | तो था ही, अहंकारी भी था। इसकारण वह दूसरे के तेज को बर्दाश्त नहीं करता था। अत: उसने पुण्डरीक से युद्ध करने की तैयारी कर ली।
इधर बलभद्र और नारायण पद के धारक नन्दिषेण पुण्डरीक दोनों भाई चिरकाल तक तीनखण्ड का | शासन कर रहे थे। इसी बीच नन्दिषेण बलभद्र को बहुत ही वैराग्य उत्पन्न हुआ। उससे प्रेरित हो उन्होंने शिवघोष नामक मुनिराज के पास जाकर संयम धारण कर लिया और बाह्य-आभ्यन्तर - दोनों प्रकार का तपश्चरण किया और केवलज्ञानी होकर मोक्ष प्राप्त किया।
पुण्डरीक ने चिरकाल तक भोग भोगे और अत्यन्त आसक्ति के कारण तथा बहुत आरंभ-परिग्रह के कारण नरकायु का बन्ध कर लिया। अन्त में रौद्रध्यान पूर्वक मरकर वह पापोदय से तमःप्रभा नामक छठवें नरक में उत्पन्न हुआ।
निशुम्भ ने चिरकाल तक पुण्डरीक से युद्ध किया और अन्त में उसके चक्र-प्रहार से मरण को प्राप्त होकर छठवें नरक में उत्पन्न हुआ।
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