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के अन्त में मरण कर नरक में गया। भाई के लिए वियोग से सुप्रभ दुःखी तो हुआ; परन्तु संसार से विरक्त | होकर दीक्षा लेकर आत्मसाधना कर मोक्ष प्राप्त किया।
सारांश यह है कि - सुप्रभ बलभद्र पहले नन्दन नामक नगर में महाबल नाम के राजा थे। फिर महान तप कर बारहवें स्वर्ग में देव हुए, तदनन्तर सुप्रभ नाम के बलभद्र हुए और समस्त परिग्रह को छोड़कर उसी भव से मुक्त हुए। ज्ञातव्य है कि बलभद्र स्वर्ग और मोक्ष ही जाते हैं, उनकी सद्गति ही होती है।
पुरुषोत्तम नारायण पहले पोदनपुर नगर में वसुषेण नाम के राजा थे, फिर तप कर शुक्ल लेश्या का धारक देव हुए, फिर वहाँ से चयकर अर्धचक्री पुरुषोत्तम नाम के नारायण हुए। तत्पश्चात् मरण कर छठवीं पृथ्वी में उत्पन्न हुए। मलयदेश का अधिपति राजा चण्डशासन चिरकाल तक भ्रमण करता हुआ मधुसूदन नाम का प्रतिनारायण हुआ और मरण कर छठवें नरक गया।
५. सुदर्शन बलभद्र, पुरुषसिंह नारायण एवं मधुक्रीड प्रतिनारायण जम्बूद्वीप में वीत शोकापुरी नाम की नगरी में ऐश्वर्यशाली नर वृषभ राजा ने बहुत भारी सुख भोगे और अन्त में विरक्त होकर समस्त राज्य त्याग कर दिगम्बर दीक्षा धारण कर ली। अपनी विशाल आयु तपश्चरण में बिता कर सहस्रार स्वर्ग में अठारह सागर की स्थितिवाला देव हुआ।
देवपर्याय की आयु के अन्त में शान्तिचित्त होकर इसी जम्बूद्वीप के खरगपुर नगर के इक्ष्वाकुवंशी राजा | सिंहसेन की विजया रानी से सुदर्शन नामक बलभद्र हुए।
इसी सिंहसेन राजा की अम्बिका नाम की दूसरी रानी से सुमित्र का जीव, जो कि पहले राजगृह नगर का राजा था, बड़ा अभिमानी और मल्ल था, जिसे राजसिंह राजा ने पराजित कर दिया था, जिसने साधु बनकर निदान के साथ संन्यास लेकर पहले स्वर्ग प्राप्त किया था, वही बाद में पुरुषसिंह नाम का बलशाली नारायण पुत्र हुआ। एक दूसरे के अनुकूल बुद्धि, रूप और बल से सहित उन दोनों भाइयों ने समस्त शत्रुओं |
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