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________________ नारायण स्वयंभू अपने पूर्व के तीसरे भव में इसी भारतवर्ष के कुणाल देश में श्रीवास्ती नगर का सुकेतु | नाम का राजा था, वह बहुत कामी था और द्यूत व्यसन में आसक्त था, सबके समझाने पर भी अपने भवितव्यानुसार जब वह जुआ में सब कुछ हार गया तब वह सुधर्माचार्य की शरण में गया। वहाँ उसने जिनागम का उपदेश सुना और संसार से विरक्त होकर दीक्षा धारण भी कर ली; परन्तु उसकी श्रद्धा सम्यक् नहीं हुई और उसने घोर तप करते हुए निदान बांधा, फलस्वरूप वह लान्तवस्वर्ग में देव हुआ। वहाँ से चयकर इसी भरत क्षेत्र के द्वारावती नगरी के राजा भद्र की द्वितीय पत्नी से स्वयंभू नाम का पुत्र हुआ। सुधर्म बलभद्र था और स्वयंभू नारायण । दोनों में अत्यधिक प्रीति थी। सुकेतु की पर्याय में जिस राजा ने जुआ में सुकेतु का राज्य जीता था। वह मरकर रत्नपुर नगर में राजा मधु हुआ। मधु प्रतिनारायण था। पूर्वजन्म के वैर का संस्कार होने से राजा स्वयंभू मधु का नाम सुनते ही कुपित हो जाता। अन्ततोगत्वा होनहार के अनुसार प्रतिनारायण मधु नारायण स्वयंभू के द्वारा मारा गया और मरकर सातवें नरक में गया। स्वयंभू भी जीवन के अन्त में मरकर नरक गया। भाई स्वयंभू के मरने से बलभद्र सुधर्म ने संसार को असार जानकर जिनदीक्षा धारण कर ली और आत्मा की साधना, आराधना कर निजस्वभाव के साधन द्वारा परमात्मपद प्राप्त कर लिया। ___ सम्पूर्ण कथन का संक्षिप्त सार यह है कि - सुधर्म बलभद्र तीसरे पूर्वभव में मित्रनन्दी राजा थे, फिर दीक्षित होकर समाधिमरण कर अनुत्तर विमान में अहमिन्द्र हुए, वहाँ से चयकर द्वारावती नगरी में सुधर्म नाम के | बलभद्र हुए और आत्मस्वरूप को सिद्धकर मुक्ति को प्राप्त हुए। __ मोह वश किए दुर्व्यसन के सेवन से मूर्ख स्वयंभू और राजा मधु पाप का संचय कर दुःखदायी नरक में पहुँचे सो ठीक ही है क्योंकि धर्म, अर्थ, काम - इन तीन का यदि कुमार्ग वृत्ति से सेवन किया जाये तो यह तीनों ही दुःख-परम्परा के कारण हो जाते हैं। 8 FNFFFFFFFF २५
SR No.008375
Book TitleSalaka Purush Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size1 MB
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