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________________ (३६२|| संक्षिप्त सार यह है कि - बलभद्र अचल तीसरे पूर्वभव में महापुर नगर में वायुरथ नाम का राजा था, फिर उत्कृष्ट चारित्र प्राप्त कर उसी प्राणत स्वर्ग के अनुत्तर विमान में उत्पन्न हुआ, तदनन्तर द्वारावती नगरी में अचल नाम का बलभद्र हुआ और अन्त में निर्वाण प्राप्त कर त्रिभुवन के द्वारा पूज्य हुए। || नारायण द्विपृष्ठ तीन भव पूर्व पहले इसी भरतक्षेत्र के कनकपुर नगर में सुषेण नाम का प्रसिद्ध राजा था, | फिर तपश्चरण कर चौदहवें स्वर्ग में देव हुआ, तदनन्तर तीन खण्ड की रक्षा करनेवाला द्विपृष्ठ नाम का | अर्धचक्री हुआ और उसके बाद बहु आरंभ और बहु परिग्रह के ममत्व में मरकर सातवें नरक गया। प्रतिनारायणक तारक पहले प्रसिद्ध विन्ध्यनगर में विन्ध्यशक्ति नाम का राजा था, फिर चिरकाल तक | संसार में परिभ्रमण करते हुए भोगवर्द्धन नगर का राजा हुआ और अन्त में द्विपृष्ठ नारायण के द्वारा मारा जाकर सातवें नरक में उत्पन्न हुआ। "बुरे काम का बुरा नतीजा' इस उक्ति के अनुसार उसे नरक ही जाना था, सो गया। ३. सुधर्म बलभद्र, स्वयंभू नारायण एवं मधु प्रतिनारायण बलभद्र सुधर्म अपने पूर्व के तीसरे भव में पश्चिम विदेह क्षेत्र में मित्रनन्दी नाम का श्री सम्पन्न और भ्रद परिणामी न्यायप्रिय परोपकारी राजा था। परोपकार में स्वोपकार स्वत: निहित रहता है, इसकारण शत्रु की सेना भी उसको अपना मानती थी। जो कठोर शासक होते हैं, केवल अपना ही स्वार्थ देखते हैं, उनकी स्वयं की सेना भी हृदय से शत्रु सेना के समान उसके विरुद्ध हो जाती है। एक दिन वह बुद्धिमान नन्दीमित्र 'सुव्रत' नाम के जिनेन्द्रदेव के पास पहुँचा और वहाँ धर्म का स्वरूप सुनकर अपने शरीर और भोगादि के अनुकूल संयोगों को नश्वर मानने लगा तथा संसार सुखों से विरक्त होकर उसने संयम धारण कर लिया। अन्त में समाधि पूर्वक देह त्याग कर तैंतीस सागर की उत्कृष्ट आयु वाला अहमिन्द्र हुआ। वहाँ से चयकर द्वारावती नगरी के राजा भद्र और रानी सुभद्र के घर सुधर्म नामक पुत्र हुआ। जो तीसरे बलभद्र हुए। अब निकट भविष्य में मुक्त होंगे। EFFFFF Tv
SR No.008375
Book TitleSalaka Purush Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size1 MB
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