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३६७| प्रतिनारायण होकर मरण कर नरक में गया।
| सारांश यह है कि उपर्युक्त तीनों चरित्रों की दिव्यध्वनि में हुई निश्चित होनहार की घोषणाओं से स्पष्ट है कि “कोई किसी की होनहार को टाल नहीं सकता, बदल नहीं सकता। अत: अन्य के भले-बुरे करने का अहंकार और क्रोध करना व्यर्थ है।" ऐसा विचार करके संक्लेश न करके समताभाव रखे। .
२. अचल बलभद्र, द्विपृष्ठ नारायण एवं तारक प्रतिनारायण इसी भरतक्षेत्र में कनकपुर नगर के राजा सुषेण थे। उनके यहाँ एक गुणमंजरी नामक नर्तकी थी। वह || रूपवती सौभाग्यवती थी और संगीत नृत्य में निपुण थी। अत: उसे सब राजा चाहते थे। एक विद्यशक्ति नाम का राजा उस पर मोहित हो गया। उसने सुषेण को युद्ध में पराजित कर उस नृत्यांगना को छीन लिया। ठीक ही है जब पुण्य क्षीण हो जाता है तो न चाहते हुए भी प्रियवस्तु छिन ही जाती है। ____ एक दिन उस सुषेण ने सुव्रत मुनि से जिनदीक्षा ले ली, परन्तु उसने विद्यशक्ति से प्राप्त पराजय से निदान बंध किया और संन्यास पूर्वक मरण से वह प्राणतस्वर्ग में देव हुआ।
इसी भरतक्षेत्र के महापुर नगर में वायुरथ राजा था। उसने भी धनरथ पुत्र को राज्य देकर सुव्रत मुनि से उपदेश सुनकर जिनदीक्षा ली और वह भी उसी प्राणत स्वर्ग में इन्द्र हुआ । वायुरथ का जीव प्राणत स्वर्ग से चयकर राजा ब्रह्म की प्रथम रानी से अचल नामक बलभद्र हुआ और सुषेण का जीव राजा ब्रह्म की ही द्वितीय रानी से प्राणत स्वर्ग से चयकर द्विपृष्ठ नारायण हुआ। वे बलभद्र और नारायण जब परस्पर में मिलते थे तब गंगा और यमुना के संगम के समान प्रतीत होते थे।
विन्ध्यशक्ति का जीव संसार में परिभ्रमण करता हुआ भरतक्षेत्र में ही योग वर्द्धन नगर के राजा श्रीधर के तारक नामक पुत्र हुआ। जो अपनी शक्ति से युद्ध में विजय प्राप्त करते हुए नारायण द्विपृष्ठ से युद्ध करने को तत्पर हो गया और उस युद्ध में बुरी तरह मारा गया। मरण कर सातवें नरक में गया।
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