________________
REE FOR "FF 0
१. विजय बलभद्र, त्रिपृष्ठ नारायण एवं अश्वग्रीव प्रतिनारायण पोदनपुर नगर में प्रजापति राजा और जयावती रानी से विजय नामक प्रथम बलभ्रद हुए। उन्हीं प्रजापति | महाराज की द्वितीय रानी मृगावती से त्रिपृष्ठ नामक प्रथम नारायण हुए। त्रिपृष्ठ नारायण अर्द्धचक्री थे। बलभद्र और नारायण भाई-भाई ही होते हैं, पर सहोदर नहीं होते । पिता दोनों के एक ही होते हैं, पर मातायें भिन्न-भिन्न होती हैं।
उसीसमय विजयार्द्ध पर्वत की उत्तरश्रेणी के अलकापुर नगर के मयूरग्रीव विद्याधर राजा और नीलांजना | रानी से अश्वग्रीव नामक प्रथम प्रतिनारायण हुआ। ये सब पूर्वोपार्जित पुण्य कर्मों के फलस्वरूप सुख से
रहते थे; परन्तु पुण्य कभी किसी के अखण्ड रूप से नहीं रहा। || पुराण कहते हैं कि नारायण और प्रतिनारायण की नियम से अधोगति होती है, क्योंकि वह अर्द्धचक्री होता है और राज्यपद में ही संक्लेश भावों से मरता है तथा प्रतिनारायण नारायण के हाथों मारा जाता है। नारायण त्रिपृष्ठ और प्रतिनारायण अश्वग्रीव में युद्ध हुआ और अश्वग्रीव त्रिपृष्ठ के द्वारा मारा गया।
बलभद्र भद्रपुरुष होते हैं। वे राज्य का मोह त्याग कर मुक्त ही होते हैं। सृष्टि के इस नियमानुसार विजय बलभद्र के यथासमय वैराग्य हुआ और उन्होंने मुनिधर्म द्वारा आत्मसाधना कर मोक्ष प्राप्त किया।
बलभद्र विजय तीसरे पूर्वभव में विशाखभूति नाम का राजा था। फिर महाशुक्र स्वर्ग में देव हुआ, वहाँ से चयकर विजय नाम के बलभद्र हुए और फिर मुनि दीक्षा धारण कर केवलज्ञान को प्राप्त कर मुक्त हुए।
नारायण त्रिपृष्ठ, तीसरे पूर्वभव में विश्वनन्दी नाम का राजा था, फिर महाशुक्र स्वर्ग में देव हुआ, फिर त्रिपृष्ठ नाम का नारायण हुआ, तत्पश्चात् पाप का संचय कर सातवें नरक में गया।
प्रतिनारायण अश्वग्रीव असंख्य पूर्वभव पहले विशाखनन्दी था, फिर प्रताप रहित हो मरण कर संसार ॥ में परिभ्रमण करता रहा, फिर अश्वग्रीव नाम का विद्याधर राजा हुआ, जो कि त्रिपृष्ठ नारायण का शत्रु
3 EFFFFFFFFFFF