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बलभद्र, नारायण एवं प्रतिनारायणों का सामान्य स्वरूप बलभद्र :- शलाका पुरुषों में बलदेवों का भी स्थान है। इन्हें, बलदेव और हलधर भी कहते हैं। बलभद्र, नारायण के बड़े भ्राता होते हैं। इन दोनों में प्रगाढ़ स्नेह रहता है, जो कि लोक विख्यात है। सभी बलभद्र होनेवाले जीव तपश्चरण कर देव पर्याय प्राप्त करते हैं और फिर वहाँ से आकर बलभद्र बनते हैं। ये अतुल पराक्रमी, रूप सम्पन्न और यशस्वी होते हैं। नारायण का चिर वियोग होने पर छह माह बाद किन्हीं निमित्तों को पकर इन्हें जीवन की यथार्थता का बोध होता है, जिससे यह मुनि बनकर आत्मसाधना करते हैं। सभी बलभद्र मोक्ष प्राप्त करते हैं। यह समचतुरस्र संस्थान, वज्रवृषभनाराच संहनन के धारी गौर वर्ण होते हैं। प्रत्येक बलभद्र के आठ हजार रानियाँ, सोलह हजार देश, सोलह हजार अधीनस्थ राजा होते हैं। ये ९ होते हैं। इनके नाम हैं - विजय, अचल, सुधर्म, सुप्रभ, सुदर्शन, नन्दी, नन्दिमित्र, राम और बलराम ।
नारायण और प्रतिनारायण :- ये भी शलाका पुरुष होते हैं। चक्रवर्ती से आधा साम्राज्य अर्थात् तीन खंड के अधिपति होने के कारण नारायण अर्धचक्री होते हैं। इनकी संख्या नौ होती है। इन पर सदा सोलह चमर ढोरे जाते हैं। सोलह हजार इनकी रानियाँ होती हैं। नारायण बलभद्रों के छोटे भाई होते हैं। उत्तम संहनन और संस्थानसहित सुवर्ण वर्ण वाले होते हैं। नारायण को केशव, हरि, गोविन्द और वासुदेव भी कहते हैं। ये नारायण कोटिशिला उठाकर सुनन्द नाम के देव को वश में करते हैं। तत्पश्चात् गंगा के किनारे जाकर गंगा द्वार के निकट सागर में स्थित मागध देव को केवल बाण फेंककर वश में करते हैं। तदनन्तर समुद्र के किनारे-किनारे जाकर जम्बूद्वीप के दक्षिण वैजयन्त द्वार के निकट समुद्र में स्थित वरतनु नामक देव को वश में करते हैं। तदनन्तर पश्चिम की ओर प्रयाण करते हुए सिन्धु नदी के द्वार के निकटवर्ती समुद्र
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