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________________ का रूप धारण करके बड़ी विभूति के साथ मुनिराज की सेवा करने लगी। चक्रवर्ती रूपधारिणी देवी का वैभव देखकर मुनि संभूत ने यह निदान किया कि यदि मेरे तप में बल है तो मुझे उसके फलस्वरूप अन्य जन्म में चक्रवर्ती पद की प्राप्ति हो। यह निदान करके संभूत मुनि मरकर सौधर्म स्वर्ग में देव हुए। संभूत का जीव स्वर्ग की आयु पूर्ण होने पर कम्पिला नगरी में ब्रह्मरथ नामक राजा और महादेवी रानी से पुत्र हुआ, जिसका नाम ब्रह्मदत्त रखा गया। जब वह शासन करने योग्य हुआ तो पिता ने उसको राज्यभार सौंप दिया। उसी समय उसकी आयुधशाला में चक्ररत्न प्रकट हुआ। चक्ररत्न की सहायता से उसने अल्पकाल में ही सम्पूर्ण भरतक्षेत्र को जीतकर चक्रवर्तीपद प्राप्त कर लिया। उसके पास चौदह रत्न, नवनिधि और अपार वैभव था। नेमिनाथ और पार्श्वनाथ भगवान के अन्तराल में हुआ यह बारहवाँ चक्रवर्ती है। वसुशर्मा पुरोहित संसार में नाना योनियों में भ्रमण करता हुआ चक्रवर्ती की भोजनशाला में जयसेन नामक सूपकार (रसोइया) बना । एक दिन चक्रवर्ती भोजन करने बैठा तो उस जयसेन रसोइया ने गर्म-गर्म दूध परोस दिया । चक्रवर्ती ने दूध पिया तो उसकी जीभ जल गई। इससे वह इतना कुपित हुआ कि उसने वह गर्म-गर्म दूध उस रसोइया के सिर पर उंडेल दिया। उबलते हुए दूध के कारण रसोइया की तत्काल मृत्यु हो गई। मरकर वह लवणसमुद्र के रत्नद्वीप में व्यन्तर जाति का देव बना । विभंगावधिज्ञान से वह अपने पूर्व भव की कष्ट-कथा जानकर क्रोध के मारे कांपने लगा। जिससे वह चक्रवर्ती से उसका प्रतिशोध लेने के लिए चल दिया। वह परिव्राजक का वेष धारण करके नानाप्रकार के फल लाया और उन्हें चक्रवर्ती को भेंट किये। उन्हें खाकर चक्रवर्ती अत्यन्त प्रसन्न हुआ और बोला - "तात्! इतने मधुर और स्वादिष्ट फल तुम्हें कहाँ मिले, क्या ऐसे फल और भी हैं ?" परिव्राजक विनय पूर्वक बोला - "राजाधिराज! मेरा मठ एक टापू में है। वहीं एक बहुत सुन्दर बगीचा है। उसी के फल हैं। मेरे पास इस समय तो इतने ही फल हैं, किन्तु मेरे उस बगीचे में ऐसे अनेक प्रकार के स्वादिष्ट फलों की प्रचुरता है। यदि आप मेरे साथ चलें तो मैं आपको ऐसे फलों से तृप्त कर दूंगा।" परिव्राजक की रसभरी बातें सुनकर चक्रवर्ती का मन लुभा २४
SR No.008375
Book TitleSalaka Purush Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size1 MB
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