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________________ ३५५ श ला का पु रु ष उ | समय पश्चात् उसे ज्ञात हुआ कि यह नर्तकी स्त्री नहीं; किन्तु कला विज्ञान में निष्णात कोई रूपवान पुरुष है। तब वसु शर्मा पुरोहित ने प्रसन्न होकर संभूत के साथ अपनी बहन लक्ष्मीमति का विवाह कर दिया । एक दिन, दिन के प्रकाश में लोगों को भी दाढ़ी मूंछ दिख जाने के कारण पता चल गया कि ये दोनों ही नर्तकियाँ स्त्री नहीं, पुरुष हैं । IF F त्त १२. ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती काशी जनपद में वाराणसी नगरी थी। उसमें सुषेण नामक एक निर्धन कृषक रहता था । उसकी स्त्री का | नाम गान्धारी था । संभूत और चित्त नाम के इनके दो पुत्र थे । ये दोनों पुत्र नृत्य और गान में बड़े निपुण थे और स्त्री वेष धारण करके ये विभिन्न नगरों में नृत्य और गान का प्रदर्शन करते थे। यही उनकी आजीविका का साधन था। एक बार वे दोनों राजगृह नगर में पहुँचे। वहाँ उन्होंने गीत और नृत्य का प्रदर्शन किया । स्त्री का भेष धारण किए हुए संभूत का नृत्य देखकर वसुशर्मा पुरोहित इसके ऊपर मोहित हो गया । बहुत रा इन्हीं दिनों काशी में गुरुदत्त नामक एक मुनि पधारे। दोनों भाई भी उनका उपदेश सुनने गये । उपदेश सुनकर वे इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने मुनि दीक्षा ले ली। उन्होंने समस्त आगमों का अध्ययन किया और घोर तप करने लगे। एक बार विहार करते हुए वे राजगृही पधारे। संभूत मुनि पक्षोपवास के पारणा के लिए नगर में पधारे। भिक्षा के लिए जाते हुए मुनि ने वसुशर्मा पुरोहित को देखा । वसु शर्मा पुरोहित ने इन्हें पहचान लिया कि यह वही है जिससे मैंने अपनी बहिन का विवाह किया था, यह उसे त्याग कर मुनि हो गया । इसकारण उसे संभूत से द्वेष हो गया और वह मुनि संभूत को मारने दौड़ा। तभी मुनि के मुख में भयानक | तेज निकला। उसकी अग्नि से सम्पूर्ण दिशायें व्याप्त हो गईं। ज्यों ही इस घटना का पता चित्त मुनि को लगा, वे शीघ्रता पूर्वक वहाँ आये और उन्होंने संभूत मुनि के तेज को रोक दिया । वसुशर्मा इस घटना के कारण इतना भयभीत हो गया कि वह अपने प्राण बचाकर वहाँ से भाग गया। उससमय एक देवी चक्रवर्ती ब्र ह्य 1 po द त्त च व र्ती पर्व २४
SR No.008375
Book TitleSalaka Purush Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size1 MB
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