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________________ BREE FRmFFy था। वहीं बैठे-बैठे उसने देखा कि चन्द्रमा को राहु ने ग्रस लिया है, यह देखकर वह विचार करने लगा कि | संसार की इस अवस्था को धिक्कार हो । देखो, यह चन्द्रमा ज्योतिर्लोक का मुख्य नायक है, पूर्ण है और अपने परिवार से घिरा हुआ है। फिर भी राहु ने इसे ग्रस लिया। जब इसकी यह दशा है तब जिसका | उल्लंघन नहीं कर सकता ऐसा समय आने पर दूसरों की क्या दशा होती होगी।' इसप्रकार चन्द्रग्रहण देखकर चक्रवर्ती हरिषेण को वैराग्य उत्पन्न हो गया। उसने अनुप्रेक्षाओं के स्वरूप का वर्णन करते हुए अपनी सभा में स्थित लोगों को श्रेष्ठधर्म का स्वरूप बतलाया। उस हरिषेण ने अपने महासेन नामक पुत्र के लिए राज्य प्रदान किया तथा मनोवांछित पदार्थ देकर दीन, अनाथ तथा याचकों | को संतुष्ट किया। तदनन्तर वैराग्य को प्राप्त उस चक्री ने सीमन्त पर्वत पर स्थित श्रीनाग नामक मुनिराज के पास जाकर अनेक राजाओं के साथ निर्ग्रन्थ दीक्षा धारण कर ली। क्रम-क्रम से अनेक ऋद्धियाँ प्राप्त की। तदनन्तर घातिया कर्म के क्षय से केवलज्ञान प्राप्त कर निर्वाण पद प्राप्त किया। हरिषेण चक्रवर्ती का जीव पहले भव में राजा था, फिर संसार से भयभीत हो तप धारण कर तृतीय स्वर्ग में देव हुआ, तत्पश्चात् आयु के अन्त में वहाँ से पृथ्वी पर आकर हरिषेण चक्रवर्ती हुआ और तपश्चरण कर मुक्ति को प्राप्त हुआ। इस कथा में एक सर्वाधिक मार्मिक प्रसंग है कि जब सास-बहू में तकरार हो गई कि 'पहले किसका रथ निकले तो पत्नी के मोह में आसक्त होते हुए भी जब उसने माँ के पक्ष को प्रबल एवं न्याययुक्त देखा और दोनों के बीच में पड़कर न्याय दिलाने में स्वयं को असमर्थ पाया तो वह पत्नी का मोह त्याग कर वहाँ से चला गया और जब माँ को न्याय दिलाने में समर्थ हो गया तो लौटकर उसने माँ का समर्थन किया। ११. जयसेन नमिनाथ तीर्थंकर के तीर्थ में वत्स देश की कौशाम्बी नगरी के अधिपति, इक्ष्वाकुवंशी राजा विजय ॥ २४ 5 RAIPS OF
SR No.008375
Book TitleSalaka Purush Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size1 MB
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