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________________ REEFFFFF | नमस्कार करके चला गया। रत्नत्रय की आराधना करते हुए आयु के अन्त में समाधि प्राप्त कर वे मुनिराज | तीसरे स्वर्ग में देव हुए। सनत चक्रवर्ती के पूर्वभवों का परिचय कराते हुए कहा गया है कि - पूर्वभवों में यह गोवर्द्धन ग्राम का निवासी हेमबाहु था। महापूजा की अनुमोदना से यक्ष हुआ। सम्यग्दर्शन से सम्पन्न होने तथा जिन वन्दना करने से तीन बार मनुष्य हुआ, देव हुआ और इसके पश्चात् महापुरी नगरी का धर्मरूचि नाम का राजा हुआ। मुनि बनकर तपश्चरण करते हुए माहेन्द्र स्वर्ग में देव हुआ और वहाँ से चलकर चक्रवर्ती सनतकुमार हुआ है। इस कथानक से पाठकों को यह संदेश दिया गया है कि - चक्रवर्ती जैसे सातिशय पुण्य के धनी जीवों को भी पापोदय के निमित्त से ऐसी प्रतिकूलता के प्रसंग बन सकते हैं, अत: हमें प्रतिकूलताओं की परवाह न करते हुए अपने स्वस्थ जीवन में ही आत्मकल्याण में लगकर मानव जीवन को सफल कर लेना चाहिए। बाह्य धनादि के संग्रह करने में अपना अमूल्य समय बर्बाद नहीं करना चाहिए। ५. शान्तिनाथ चक्रवर्ती सोलहवें तीर्थंकर शान्तिनाथ भगवान पाँचवें चक्रवर्ती पद के धारक भी थे। वे शान्तिनाथ चक्रवर्ती के पूर्व तीसरे भव में विदेह क्षेत्र में मेघरथ नाम के राजा थे। उनके पिता राजा धनरथ मेघरथ को राजसत्ता सौंपकर मुनि हो गये और उन्होंने तीर्थंकर प्रकृति का बंध कर वे तीर्थंकर भी हो गये। इसतरह राजा मेघरथ को तीर्थंकर के पुत्र होने का गौरव भी प्राप्त हुआ था। मेघरथ अपने पिता तीर्थंकर धनरथ के समोशरण में गये। उनकी उत्साहपूर्वक पूजा-भक्ति करके उनका उपदेश भी सुना। वे उनके धर्मोपदेश से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने अपने पुत्र मेघसेन को राज्य शासन सौंपकर अपने पिता तीर्थंकर धनरथ के सान्निध्य में दीक्षा ले ली। आत्मसाधना करते हुए ग्यारह अंग का ज्ञान प्राप्त किया तथा समाधिमरण पूर्वक देह त्याग कर | सर्वार्थसिद्धि विमान में अहमिन्द्र हुए। वहाँ से चयकर चक्रवर्तित्व के संसूचक चक्ररत्न का प्रवर्तन कर || २४ FE & To EF
SR No.008375
Book TitleSalaka Purush Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size1 MB
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