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________________ CREE F IFE 19 और रूप को देखकर बड़े खिन्न हुये और बोले - “राजन! यह रूप, यौवन, बल, तेज और वैभव इन्द्र || धनुष के समान क्षणभंगुर है। हमने वस्त्रालंकार रहित अवस्था में आपके रूप में जो सौन्दर्य देखा था, वह | अब नहीं रहा। देवों का रूप जन्म से मृत्यु पर्यन्त एक सा रहता है, किन्तु मनुष्यों का रूप यौवन तक बढ़ता है और यौवन के पश्चात् घटने लगता है। इसलिए इस क्षणिक रूप का मोह और अहंकार व्यर्थ है।" | देवों की बात सुनकर उपस्थित सभी लोगों को बड़ा आश्चर्य हुआ। तब कुछ सभ्य जन बोले - 'हमें | तो महाराज के रूप में पहले से कुछ भी कमी दिखाई नहीं पड़ती। न जाने आप लोगों ने पहली सुन्दरता से क्यों कमी बताई है ? सुनकर देवों ने सबको प्रतीति कराने के लिए जल से पूर्ण एक घड़ा मंगवाया। | उसे सबको दिखाया। फिर एक तृण द्वारा जल की एक बूंद निकाल ली। फिर सबको घड़ा दिखाकर बोले | - 'आप लोग बतलाइये, पहले घड़े में जैसे जल भरा था, अब भी वैसे ही भरा है। क्या इसमें तुम्हें कुछ विशेषता दिखाई पड़ती है?' उत्तर मिला - 'हमें तो कुछ भी विशेषता दिखाई नहीं देता, सब देवों ने कहा - इस भरे हुए घड़े में से एक बूंद निकाल ली गई, तब भी तुम्हें जल उतना ही दिखाई पड़ता है। इसी तरह हमने महाराजा का जो रूप पहले देखा था, वह अब नहीं रहा।" देव यों कहकर अपने स्वर्ग को चले गये, किन्तु चक्रवर्ती के अन्धेरे हृदय में एक प्रकाशमान ज्योति छोड़ गये। उनके मन में विचार-तरंगें उठने लगीं - "ठीक ही तो कहते हैं ये देव । इस जगत में सब कुछ ही तो क्षणिक है, नाशवान है। मेरा यह शरीर भी तो नाशवान है, फिर इसके रूप का यह अहंकार क्यों? मैंने अब तक इस शरीर के लिए सब कुछ किया, अपने लिए कुछ नहीं किया । मैं अब आत्मा के लिए करूँगा। इस तरह मन में वैराग्य जागा तो उन्होंने तत्काल अपने पुत्र देवकुमार का राजतिलक किया और चारित्रगुप्त मुनिराज के पास जाकर जिन-दीक्षा धारण कर ली। वह आत्म कल्याण के मार्ग में निरन्तर बढ़ने लगे। एक बार षष्ठोपवास के बाद वे आहार के लिए नगर में गये । वहाँ देवदत्त नामक राजा ने उन्हें आहार कराया। मुनि सनतकुमार ने आहार लेकर फिर षष्ठोपवास ले लिया। किन्तु वह आहार इतना प्रकृति-विरुद्ध || २४ REPSE
SR No.008375
Book TitleSalaka Purush Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size1 MB
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