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४. सनतकुमार चक्रवर्ती सनतकुमार चक्रवर्ती के पूर्वभव का परिचय कराते हुए कहा गया है कि - अयोध्या नगरी के अधिपति, सूर्यवंश शिरोमणि महाराज अनन्तवीर्य की रानी सहदेवी के गर्भ से सोलहवें स्वर्ग से आकर सनत्कुमार नामक पुण्यशाली पुत्र उत्पन्न हुआ। इसने यौवन अवस्था प्राप्त होने पर भरत क्षेत्र के षट्खण्डों पर विजय प्राप्त करके चक्रवर्ती पद प्राप्त किया।
एक दिन सौधर्म इन्द्र की सभा में ईशान स्वर्ग से संगम नामक देव आया और इन्द्र के समीप बैठ गया। जैसे सूर्योदय होने पर तारागण म्लान पड़ जाते हैं, इसी प्रकार उस देव के आने पर अन्य देवों की कान्ति म्लान हो गई। उसे देखकर सभी देव अत्यन्त विस्मित थे। कुछ देव अपने कुतूहल को नहीं दबा सके और इन्द्र से पूछने लगे - 'किस कारण से यह देव सूर्य के समान तेजस्वी है?' इन्द्र ने उत्तर दिया - 'पिछले जन्म में इसने आचाम्ल वर्धमान तप किया था। उसी के फल से इसे ऐसा रूप मिला है। देवों ने इन्द्र से पुनः प्रश्न किया - 'क्या ऐसा रूप किसी और का भी है?' इन्द्र बोला - हाँ, है। हस्तिनापुर में कुरुवंश में उत्पन्न सनतकुमार चक्रवर्ती का रूप और तेज इससे भी अधिक है। इन्द्र की यह बात सुनकर मणिमाल
और रत्नचूल नामक दो देव ब्राह्मण का रूप धारण करके कुतूहलवश हस्तिनापुर पहुंचे और द्वारपाल से चक्रवर्ती के रूप-दर्शन की आज्ञा लेकर स्नान-गृह में पहुँचे और द्वारपाल से चक्रवर्ती तेल की मालिश करवा रहे थे। उनका कामदेव-सा सुन्दर रूप देखकर दोनों देव विस्मित हो गये और बोले - हे राजन्! तुम्हारे तेज, यौवन और रूप की जैसी प्रशंसा सौधर्मेन्द्र ने की थी, यह उससे भी अधिक है। हम तुम्हारा यह रूप देखने ही स्वर्ग से यहाँ आये हैं।
चक्रवर्ती देवों द्वारा प्रशंसा सुनकर बोले - "देवो! अभी तुमने क्या देखा है? आप लोग कुछ देर ठहरें। जब मैं स्नान करके वस्त्राभूषण पहनकर तैयार हो जाऊँ और सिंहासन पर बैठू तब मेरा रूप सौन्दर्य देखना।" दोनों देव सुनकर कौतुक मन में संजोये प्रतीक्षा करने लगे। जब चक्रवर्ती तैयार हो करके सिंहासन पर विराजमान हो गये, तब उन्होंने दोनों देवों को बुलाया। देव अत्यन्त उत्कण्ठा लिए पहुंचे और चक्री के तेज ॥ २४
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