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________________ श FFFF T9 इस लोक में तथा परलोक में मित्र के समान हित करनेवाला अन्य कोई नहीं है। जो बात माता-पिता एवं गुरुजनों से भी नहीं कही जा सकती- ऐसी गुप्त से गुप्त बात मित्र को बता दी जाती है। सच्चा मित्र अपने मित्र के हित में अपने प्राणों की भी परवाह नहीं करता हुआ कार्यसिद्ध कर देता है। __ मणिकेतु देव इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है। जगत के लिए एक आदर्श उदाहरण है। सब ऐसे ही मित्र बनें और सबको ऐसे ही सर्वस्व समर्पण करनेवाले मित्र मिलें। ३. मघवा चक्रवर्ती श्री वासुपूज्य तीर्थंकर के तीर्थ में नरपति नाम का एक बड़ा राजा था, जो मुनि होकर उत्कृष्ट तपश्चरण पूर्वक समाधि को प्राप्त कर मध्यम ग्रैवेयक में अहमिन्द्र हुआ। सत्ताईस सागर तक मनोहर दिव्य भोगों को भोगकर वह वहाँ से च्युत होकर धर्मनाथ तीर्थंकर के मोक्ष गमन के पश्चात् अयोध्या नगरी के स्वामी इक्ष्वाकुवंशी राजा सुमित्र के यहाँ मघवा नाम का पुत्र हुआ। उसने पाँच लाख वर्ष की आयु प्राप्त की थी। साढ़े व्यालीस धनुष ऊँचा उसका शरीर था और सुवर्ण के समान उसके शरीर की कान्ति थी। वह प्रतापी छह खण्डों से सुशोभित पृथ्वी का पालन कर चौदह महारत्नों से विभूषित एवं नौ निधियों का नायक था। चक्रवर्तियों की विभूति के प्रमाण में कही हुई विभूति को भोगता था। एक दिन मनोहर नामक उद्यान में अभयघोष नाम के केवली भगवान् पधारे। उसने उनके दर्शन कर तीन प्रदक्षिणाएँ दी, वन्दना की और धर्म का स्वरूप सुना । धर्मोपदेश से तत्त्व-ज्ञान प्राप्त कर वह विषयों से विरक्त हुआ और प्रियमित्र नामक अपने पुत्र के लिए साम्राज्य पद की विभूति प्रदान कर बाह्यभ्यन्तर परिग्रह त्याग निर्ग्रन्थ दीक्षा धारण कर ली। अन्त में समाधि प्राप्त कर सनतकुमार स्वर्ग में जन्म लिया। ___ चक्रवर्ती मघवा पहले वासुपूज्य स्वामी के तीर्थ में नरपति नाम के राजा थे, फिर श्रेष्ठ चारित्र के प्रभाव से महान ऋद्धि के धारक अहमिन्द्र हुये, तत्पश्चात् धर्मनाथ तीर्थंकर के मोक्ष होने के बाद समस्त वैभव सम्पन्न मघवा नाम के तीसरे चक्रवर्ती हुये जिन्होंने निर्ग्रन्थ दीक्षा धारण कर सनतकुमार स्वर्ग में जन्म लिया। ॥ २४
SR No.008375
Book TitleSalaka Purush Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size1 MB
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