________________
(३४|| होती हैं; परन्तु राजा महाबल इसका अपवाद था । वह लक्ष्मीवान होकर भी बुद्धिमान एवं विद्वान था । उसके |
|| पुण्य प्रताप से लक्ष्मी व सरस्वती - दोनों तो सगी बहिनों की भांति एकसाथ रहती थीं, कीर्ति भी उनकी | सेवा में सदा तत्पर रहती थीं।
राजा महाबल की कीर्ति अन्यजनों के कानों एवं वचनों में वास करती थी। सरस्वती उसके कंठ और वाणी में बसती थी। वीरलक्ष्मी उसके वक्षःस्थल में बसती थी और मनमाना खर्च करने पर भी धन की देवी (लक्ष्मी) से उसका खजाना कभी खाली नहीं होता था। पुण्योदय से उसे सभी प्रकार के सांसारिक सुख उपलब्ध थे; परन्तु सांसारिक सुख बाधासहित, नाशवान, पराधीन और अतृप्त कारक होते हैं। राजा | महाबल इस बात से अनभिज्ञ नहीं थे। कोई कितना भी भाग्यशाली क्यों न हो ? पुण्य की अखण्डता तो कभी किसी के होती ही नहीं है। जिसतरह जहाँ फूल हैं, वहीं कांटे भी हैं। जहाँ राग है, वहीं द्वेष भी है।ती सांसारिक सुख के आगे-पीछे दुःख भी होता ही है। संसार का ऐसा स्वरूप समझ कर महाबल सांसारिक सुखों से विरक्त हो गया।
महाराजा महाबल ने अपने धनपाल नामक पुत्र को राज्य देकर विमलवाहन गुरु के पास पहुँचकर संयम धारण कर लिया। वह ग्यारह अंग का पाठी हो गया। तथा सोलह कारण भावनाओं का चिन्तवन करने से उसने तीर्थंकर प्रकृति का बन्ध कर लिया। पाठक यदि चाहें तो महाबल राजा के आदर्श आचरण से मानवजीवन को सार्थक बना सकते हैं।
आयु के अन्त में महाबल समाधिमरण करके पंच अनुत्तरों के विजय नामक विमान में अहमिन्द्र के रूप में उत्पन्न हुआ। वहाँ उसकी आयु ३३ सागर की सभीप्रकार की अनुकूलता का सुख भोगने पर भी सम्यग्दर्शन सहित होने से वह जल में भिन्न कमल की भांति वैराग्यरूपी रस से भरा भक्तिपूर्वक अर्हन्त भगवान का ध्यान करता हुआ वहाँ रहता था।
कहते हैं सुख के सागरों का लम्बाकाल भी वर्षों की तरह व्यतीत हो जाता है। इसी उक्ति के अनुसार वह अहमिन्द्र भी ३३ सागर की आयु बिता कर आयु के अन्त में जब पृथ्वीतल पर स्वयंवर नामक राजा |
ES NEF