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________________ श ला का पु रु ष pm IFF उ त्त रा र्द्ध ३ "मैं हूँ स्वतंत्र स्वाधीन प्रभु, मेरा स्वभाव सुखनन्दन है। राग रंग अरु भेदभाव में, भटकन ही भव बन्धन है ।। " यह तथ्य बताया है जिसने, वे तीर्थंकर अभिनन्दन हैं। त्रैलोक्य दर्शि अभिनन्दन को, मेरा वन्दन - अभिवन्दन है ।। अनादिनिधन लोक के पदार्थों का अस्तित्व त्रिकाल सत्य है। उन त्रिकाल सिद्ध पदार्थों का यथावत् निरूपण करने से जिनके वचनों की सत्यता सिद्ध है। ऐसे जगत अभिनन्दनीय अभिनन्दनस्वामी हमारे नयनपथगामी बनें, हमारे सन्मार्गदर्शक बनें । अभिनन्दननाथ की पूर्व पर्यायों का परिचय कराते हुए आचार्य गुणभद्र कहते हैं कि “इसी जम्बूद्वीप | के पूर्व विदेह क्षेत्र में सीता नदी के दक्षिण तट पर मंगलावती नाम का देश है। उसके रत्न संचय नगर में | महाबल नाम का राजा था। वह न्यायप्रिय, प्रजापालक, अनुशासन प्रिय प्रभावशाली व्यक्ति था इसकारण उसके राजशासन में चोरी, डकैती और अन्याय नहीं होता था । समस्त प्रजा, प्रतिबंधों के बिना स्वतः अनुशासन में रहकर सुख-शान्ति से रहती थी। वह अजातशत्रु था, उसका कोई भी शत्रु नहीं था; क्योंकि वह साम-दाम-दण्ड-भेद की नीति में निपुण तो था ही, सन्धि विग्रह की कला में भी निष्णात था । धर्मात्माओं का आदर करनेवाला महाबल स्वयं धर्मनिष्ठ था । ऐसा लगता था कि अहिंसक आचरण, सत्यनिष्ठा, दयालुता, दानशीलता आदि गुण उसमें कूट-कूटकर भर दिये गये थे । कहते हैं कि लक्ष्मी और सरस्वती दोनों एक साथ नहीं रह सकतीं; क्योंकि इनमें सौतिया डाह या ईर्ष्या t Is ल क पर्व
SR No.008375
Book TitleSalaka Purush Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size1 MB
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