________________
३३६ ॥ एवं पालन-पोषण करते हुए हम सब प्रजाजन सुखी हैं, परन्तु आयु की अवधि शेष रहने पर भी यमराज ने मेरे पुत्र का अपहरण कर लिया है। मेरा एक लोक में सबसे प्यारा पुत्र था । मेरा उसके बिना जीवित रहना कठिन हो गया है। यदि आप उसे जीवित नहीं करते हैं तो यमराज मुझे भी ग्रसित कर लेगा; क्योंकि जो कच्चे फल खाने से नहीं चूकता वह पके फल क्यों छोड़ेगा ?"
श
E FET
ला
का
पु
रु
ष
उ
त्त
रा
र्द्ध
"हे द्विजराज ! क्या आप नहीं जानते कि यमराज सिद्ध भगवान
ब्राह्मण के वचन सुनकर राजा ने कहा -
| के द्वारा ही निवारण किया जाता है, अन्य जीवों के द्वारा नहीं। यह बात तो आबाल - गोपाल सबको प्रसिद्ध
है । इस संसार में कितने ही प्राणी ऐसे हैं कि जिनकी आयु बीच में ही छिद जाती है और कितने ही ऐसे | हैं कि जो जितनी आयु का बन्ध करते हैं, उतने ही जीवित रहते हैं, बीच में उनका मरण नहीं होता । यमराज पर द्वेष करना वृथा है । यमराज ऐसा कोई व्यक्ति विशेष नहीं है जो जीवों को मारता-फिरता हो, वस्तुत: यमराज नाम का कोई प्राणी ही नहीं है, मृत्यु का ही दूसरा नाम यमराज है। यदि तुम मृत्यु से छुटकारा | पाना चाहते हो तो इस व्याधि के मन्दिर शरीर से और प्रिय पुत्र से ममत्व को छोड़ो, शोक मत करो और जिनदीक्षा धारण कर लो।" इसी में तुम्हारा कल्याण है ।
जब राजा सगर ब्राह्मण वेषधारी उस मणिकेतु देव को यह सब कह चुके, तब वह मणिकेतु बोला - "हे देव! यदि यह सच है कि मृत्यु को कोई टाल नहीं सकता तो जो मैं कहूँगा उससे आपको भयभीत और आकुल-व्याकुल नहीं होना चाहिए।" आप स्वयं कहा करते हैं
-
हमको कछु भय ना रे, जान लियो संसार, जो निगोद में सो ही मुझमें सो ही मोक्ष मंझार, निश्चय भेद कछू भी नाहीं, भेद गिने संसार ।। हमको कछु.।।
जाकरि जैसे जाहि समय में, जो होतव जा द्वार, सो बनिहे टर है कछु नहीं;
कर लीनो निरधार ।। हमको कछु भय ना रे ! जान. ।।
अतः यह आपके सैद्धान्तिक ज्ञान की परीक्षा की घड़ी है ।
स
ग
र
च