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________________ ३३१ श जयसेन मुनि ने आयु के अन्त में संन्यास मरण किया। फलस्वरूप वे महाबल नामक देव हुए। जयसेन | के साले महारुत भी उसी स्वर्ग में मणिकेतु नामक देव हुआ। वहाँ उन दोनों ने परस्पर संकल्प किया। दोनों परस्पर वचनबद्ध हुए कि हम दोनों में जो पहले पृथ्वी लोक पर अवतीर्ण होगा, मनुष्य जन्म धारण करेगा, दूसरा देव उसे सांसारिक दुःखों से निकलने हेतु संयम धारण करने एवं दीक्षा लेने को संबोधित करेगा । ला का पु रु pm IF 59 ष उ रा महाबल देव अच्युत स्वर्ग से चयकर अयोध्या नगरी में महाराजा समुद्रविजय के सगर नाम का पुत्र हुआ। उसकी आयु सत्तरलाख पूर्व की थी, जिसमें से अठारह लाख पूर्व तो कुमार अवस्था में बीते तत्पश्चात् यहाँ मंडलेश्वर पद प्राप्त हुआ। कुछ दिन बाद उन्हें चक्ररत्न की प्राप्ति हुई और उन्होंने छह खण्ड | की दिग्विजय करके चक्रवर्ती पद प्राप्त किया। सगर चक्रवर्ती के एक से बढ़कर एक साठ हजार गुणवान पुत्र थे । एक दिन सिद्धिवन में एक मुनिराज पधारे थे। उन्हें उसीसमय समस्त लोकालोक के पदार्थों को प्रकाशित करनेवाला केवलज्ञान प्रगट हुआ था । उनके केवलज्ञान कल्याणक महोत्सव में अन्य देवों का तथा इन्द्रों के साथ मणिकेतु देव भी आया था । | वहाँ आकर उसने जानना चाहा कि मेरा मित्र महाबल देवलोक से मृत्यु को प्राप्त होकर कहाँ उत्पन्न हुआ | है ? ऐसी इच्छा होते ही उसने अपने अवधिज्ञान से जान लिया, वह सगर चक्रवर्ती हुआ है। ऐसा जानकर वह मणिकेतु सगर चक्रवर्ती के पास पहुँचा और बोला- “क्यों स्मरण है ? हम दोनों अच्युत स्वर्ग में कहा र करते थे कि "हम दोनों में जो पहले पृथ्वी पर अवतीर्ण होगा, उसे यहाँ रहनेवाला साथी संबोधेगा, | समझायेगा । मैं वही तुम्हारा मित्र मणिकेतु देव हूँ। भ त च "हे भव्य ! मनुष्य जन्म के साम्राज्य सुख का तू चिरकाल से उपभोग कर रहा है; परन्तु तुझे इस वैभव | में किंचित् भी सुख - शान्ति नहीं मिली है। इन जहरीले भोगों की तृष्णा नागिन ज्यों-ज्यों डसती है, त्यों| त्यों आकुलता ही उत्पन्न होती है । अत: हे राजन्! अब तू मुक्ति के लिए उद्यम कर! ये भोग भुजंग के समान हैं, इनसे अनुराग मत कर ! भुजंग के काटने से तो एक बार ही मरण होता है; किन्तु ये भोग तो अनन्त | दुःखकारी हैं। । व र्ती पर्व
SR No.008375
Book TitleSalaka Purush Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size1 MB
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