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| किनारे थोड़ा पानी भरा हुआ तालाब (९) धूलधूसरित रत्नराशि (१०) पूजा सत्कार को प्राप्त नैवेद्य खाता
॥ हुआ कुत्ता (११) उच्च स्वर में शब्द करते हुए तरुण बैल (१२) परिमण्डल से घिरा हुआ चन्द्रमा (१३) ला शोभा रहित जाते हुए दो बैल (१४) मेघों से आवृत्त सूर्य (१५) छायारहित सूखा वृक्ष (१६) जीर्ण पत्तों
के समूह। || देखे गये उन सोलह स्वप्नों का फल भगवान् ने क्रमशः इस प्रकार बतलाया - पहले स्वप्न का फल महावीर के अतिरिक्त २३ तीर्थंकरों के समय में दुर्नयों की उत्पत्ति का अभाव रहेगा, दूसरे स्वप्न का फल - महावीर के तीर्थ में अनेकों कुलिंगियों की उत्पत्ति होगी, तीसरे स्वप्न का फल - पंचम काल में साधुगण | तपश्चरण के समस्त गुणों को धारण करने में समर्थ नहीं हो सकेंगे। चौथे स्वप्न का फल - आगामी काल में दुराचारी मनुष्यों की उत्पत्ति होगी, पाँचवें स्वप्न का फल - क्षत्रिय वंश नष्ट हो जायेंगे और निम्नकुलीन | लोग शासन करेंगे, छठवें स्वप्न का फल - धर्म की इच्छा से मनुष्य अन्य मत के साधुओं के पास जायेंगे, सातवें स्वप्न का फल - व्यन्तर देवों की पूजा होगी, आठवें स्वप्न का फल - आर्य खण्ड से हटकर म्लेच्छ खण्डों में थोड़ा धर्म रह जायेगा, नौवें स्वप्न का फल - पंचमकाल में ऋद्धिधारी मुनियों का अभाव होगा, दसवें स्वप्न का फल - गुणी पात्रों के समान अव्रती अपात्रों का सत्कार होगा, ग्यारहवें स्वप्न का फल - तरुण अवस्था में ही मुनिपद की साधना होगी, वृद्धावस्था में शिथिलता रहेगी, बारहवें स्वप्न का फल - पंचमकाल में मुनियों को अवधिज्ञान व मन:पर्यय ज्ञान का अभाव होगा, तेरहवें स्वप्न का फल है कि मुनिगण साथ-साथ रहेंगे अर्थात जिनकल्प रूप एकाकी विहार का अभाव होगा, चौदहवें स्वप्न का फल है कि केवलज्ञान रूपी सूर्य का अभाव होगा, पन्द्रहवें स्वप्न का फल है कि स्त्री-पुरुष कुलाचार का त्याग करेंगे और सोलहवें स्वप्न का फल है कि महा औषधियों का रस नष्ट होगा। ___ "कैलाश पर्वत पर विराजित भगवान आदिनाथ ने समवशरण छोड़कर योग निरोध किया है" यह समाचार पाकर भरत समस्त परिवार के साथ कैलाश पर्वत पर आ गये। वहाँ उन्होंने भगवान् ऋषभदेव की तीन प्रदक्षिणायें दीं, स्तुति की और चौदह दिन तक भक्ति भाव से महामह नाम की पूजा करते रहे। भगवान
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