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| दो चारण ऋद्धिधारी मुनि थे। भरत उन्हें देखकर अत्यन्त आनन्दित हुए। उन्होंने भक्तिपूर्वक उन मुनियों का || पड़गाहन किया और गृहप्रवेश का निवेदन किया। तदनन्तर वे मुनिराज ईर्यापथ समितिपूर्वक भूमि को देखते हुए भरत के पीछे-पीछे चल पड़े। मुनिराज के आहार सम्पन्न होने पर देवों ने पञ्चाश्चर्य किये। इस तरह
श्रावकोचित दिनचर्या में सम्राट भरत की मुनिभक्ति भी प्रख्यात रही है। || एक दिन चक्रवर्ती भरत ने अद्भुत फल दर्शाने वाले स्वप्न देखे। उन स्वप्नों के देखने से जिन्हें चित्त | में कुछ खेद-सा उत्पन्न हुआ है। “भरत अचानक जाग पड़े और उन स्वप्नों के फल का इसप्रकार विचार | करने लगे कि “ये स्वप्न मुझे प्रायः बुरे फल देने वाले जान पड़ते हैं तथा साथ में यह भी जान पड़ता है | कि ये स्वप्न कुछ दूर आगे के पंचम काल में फल देने वाले होंगे; क्योंकि इस समय भगवान् ऋषभदेव
के प्रकाशमान रहते हुए प्रजा को इसप्रकार का उपद्रव होना कैसे संभव हो सकता है? इसलिए कदाचित् इस कृतयुग (चतुर्थकाल) के व्यतीत हो जाने पर जब पाप की अधिकता होने लगेगी तब ये स्वप्न अपना | फल देंगे। ये स्वप्न अनिष्ट को सूचित करने वाले हैं। यद्यपि यह अनुमान स्थूल ज्ञान करानेवाला है, सूक्ष्म तत्त्व की प्रतीति तो प्रत्यक्ष ज्ञान से ही हो सकती है। तत्त्वों का वास्तविक स्वरूप दिखलाने वाले भगवान् ऋषभदेव के रहते हुए मुझे बुद्धि का भ्रम क्यों रहे ? इसलिए इस विषय में भगवान् के मुखरूपी मंगल दर्पण को देखकर ही मुझे स्वप्नों के यथार्थ रहस्य का निर्णय करना उचित है । इसप्रकार मन में विचार कर महाराज भरत समोसरण में भगवान् की अनेक स्तोत्रों के द्वारा स्तुति कर और विधिपूर्वक पूजा कर मुनिराज द्वारा प्राप्त धर्मरूप अमृत के पान से वे बहुत ही संतुष्ट हुए और उच्च स्वर से अपने हृदय का अभिप्राय मुनिराज से इसप्रकार निवेदन करने लगे। “हे देव! आज मैंने रात्रि के अन्तिम भाग में सोलह स्वप्न देखे हैं और मुझे ऐसा जान पड़ता है कि ये स्वप्न प्रायः अनिष्ट फल देने वाले हैं। कृपया उनका फल बतायें?
(१) पर्वत पर स्थित तेईस सिंह (२) सिंह के पीछे हिरणों का समूह (३) बड़े हाथी के उठाने योग्य बोझ से झुकी पीठवाला घोड़ा (४) शुष्क पत्ते खानेवाले बकरों का समूह (५) हाथी के ऊपर बैठा बन्दर | ॥ (६) कौओं द्वारा त्रसित किया हुआ उलूक (७) नाचते हुए भूत (८) मध्य भाग में सूखा किन्तु किनारे- ॥ २४॥