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३२४| होती हैं। (२) चक्रवर्ती रात्रि के समय अपनी पट्टरानी के महल में ही रहते हैं; परन्तु चक्रवर्ती के भोग
| अबाधित होता है, इसकारण पट्टरानी के संतान नहीं होती, चक्रवर्ती अपनी पृथक् विक्रिया की
सहायता से अपने शरीर के अनेक रूप धारण कर सकते हैं, इसलिये उनकी अन्य स्त्रियों को पुत्रादिक होते रहते हैं। (३) चक्रवर्ती पर ३२ यक्षदेव ३२ चमर ढुराते रहते हैं। (४) ३२ हजार नाट्यशालायें और ३२ हजार संगीतशालायें होती हैं। ३२ हजार देश और उन प्रत्येक देश के ३२ हजार मुकुटधारी राजाओं पर स्वामित्व होता है। इसी तरह १६ हजार गणबद्ध देवों का स्वामी और ८८ हजार म्लेच्छ राजाओं का स्वामी होता है। ॥ • ग्राम - जिस गाँव के चारों ओर परकोटा होता है उसे 'ग्राम' कहते हैं। चक्रवर्ती के ९६ करोड़ ग्राम || होते हैं। नगर - जो गाँव चारों ओर दीवाल और चार दरवाजों से संयुक्त होता है उसे 'नगर' कहते हैं। नगर ७५ हजार होते हैं। • खेट - नदी और पर्वतों से वेष्टित रहने वाले गाँव को 'खेट' कहते हैं। ये खेट ७६ करोड़ होते हैं। . कर्वट - पर्वतों से वेष्टित गाँव को 'कर्वट' कहते हैं। कर्वट २४ हजार होते हैं। . मटंब - जो पाँच सौ ग्रामों में प्रधान होता है, उसे मटंब कहते हैं। मटंब ४ हजार होते हैं। पट्टन - जहाँ रत्न उत्पन्न होते हैं उस गाँव को ‘पट्टन' कहते हैं। पट्टन ४८ हजार होते हैं। द्रोणमुख - नदी के किनारे से वेष्टित हुए ग्राम को 'द्रोणमुख' कहते हैं। द्रोणमुख ९९ हजार होते हैं। संवाहन - बहुत प्रकार के अरण्यों से युक्त महापर्वत के शिखर पर स्थित रहने वाले गाँवों को संवाहन' कहते हैं। संवाहन १४ हजार होते हैं।
भरत और ऐरावत खण्ड में कालानुसार एक-एक चक्रवर्ती होते रहते हैं। भरतक्षेत्र में जिस प्रकार एक आर्यखण्ड और पाँच म्लेच्छ खण्ड मिलकर ६ खण्ड होते हैं, उसी प्रकार ऐरावत क्षेत्र में भी छह खण्ड होते हैं। विदेह क्षेत्र में जो ३२ देश हैं उन देशों में भरतक्षेत्र के समान छह छह खण्ड होते हैं और उन देशों में एक-एक चक्रवर्ती होते रहते हैं।
चक्रवर्तियों की संख्या जो १२ कही है वह भरत और ऐरावत क्षेत्रों की अपेक्षा कही गई है। विदेह क्षेत्र || पर्व || में वे सर्वत्र होते रहते हैं। वहाँ उत्कृष्ट या जघन्य संख्या का नियम नहीं है। नरक से आने वाले जीवों को || २४
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