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३२३ || इच्छित पदार्थों को प्रदान करता है । १४. चर्मरत्न :- सैन्यादिकों को नद और नदी से सुरक्षित रीति से पार | कराता है। इसप्रकार चेतन और अचेतन रूप से ये चौदह रत्न चक्रवर्ती के रहते हैं। चेतन रत्नों में १ से ५ तक अपने-अपने नगरों में उत्पन्न होते हैं और ६-७ विजयार्ध पर्वत में उत्पन्न होते हैं । अचेतन रत्नों में ८ से ११ तक आयुधशाला में उत्पन्न होते हैं तथा १२ से १४ तक श्रीदेवी के मन्दिर में उत्पन्न होते हैं ।
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• चक्रवर्ती के स्वामित्व का स्वरूप :- चक्रवर्ती का ३२ हजार राजाओं पर स्वामित्व होता है । - जो समस्त नर अर्थात् मनुष्यों का रक्षण करने वाला है वह नृप या नृपति कहलाता है ।
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भूप :- समस्त पृथ्वी का जो रक्षक है वह भूप या भूपति कहलाता है।
राजा :- जो समस्त प्रजाजनों को राजी रखने वाला है वही राजा कहलाता है।
• राजाओं की १८ श्रेणियों का स्वरूप :- १. सेनापति सेना का नायक, २. गणकपतिः - ज्योतिषी
का नायक, ३. वणिक्पति - व्यापारियों का नायक, ४. दण्डपति - समस्त सेनाओं का नायक, ५. मंत्री
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| - पंचागमंत्र विषय में प्रवीण, ६. महत्तर - कुलवान्, ७. तलवर - कोतवाल का स्वामी, ८. ब्राह्मण, ९. क्षत्रिय, १०. वैश्य, ११. शूद्र - ( इन चातुवर्ण्य का स्वामी) १२. हाथी, १३. घोड़ा, १४. रथ, १५. पदाति का
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( इस चतुरंग बल का स्वामी), १६. पुरोहित - आत्महित कार्य का अधिकारी, १७. अमात्य - देश का सा अधिकारी, १८. महामात्य - समस्त राज्य कार्यों का अधिकारी । जो उपर्युक्त १८ श्रेणियों का स्वामी है। अधिराजा :- पाँच सौ मुकुटधारी राजाओं का स्वामी । महाराजा :- एक हजार मुकुटधारी राजाओं का | स्वामी । दो हजार मुकुटधारी राजाओं का स्वामी है वह 'मुकुटबद्ध' या 'अर्धमांडलिक', चार हजार मुकुटधारी राजाओं का स्वामी है वह 'मांडलिक', आठ हजार मुकुटधारी राजाओं का स्वामी है वह 'महामांडलिक', सोलह हजार मुकुटधारी राजाओं का स्वामी है वह 'अर्धचक्री' तथा जो बत्तीस हजार मुकुटधारी राजाओं का स्वामी है वह 'सकल चक्रवर्ती कहलाता है।
• चक्रवर्ती का पारिवारिक वैभव : - (१) चक्रवर्ती के एक पट्टरानी के सिवाय ९६ हजार स्त्रियाँ और
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