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________________ में जाकर वह भी वीतरागी बन जाता है। उसके समस्त मोह-राग-द्वेष नष्ट हो जाते हैं। वह लोकालोक का ज्ञाता हो जाता है, वह स्वयं वीतरागी बन जाता है। | हे प्रभो! जिसके क्षयोपशम ज्ञान में वीतरागता और सर्वज्ञता का सच्चा स्वरूप आ गया; वह निश्चित रूप से भविष्य में पूर्ण वीतरागता और सर्वज्ञता को प्राप्त करेगा। सर्वज्ञ का ज्ञान तो अनन्त महिमावंत है ही, किन्तु जिसके ज्ञान में सर्वज्ञता का स्वरूप आ गया, उसका ज्ञान भी कम महिमावाला नहीं है; क्योंकि वह सर्वज्ञता प्राप्त करने का बीज है। सर्वज्ञता की श्रद्धा बिना, पर्याय में सर्वज्ञता प्रगट नहीं होती।" इन्द्रभूति गौतम के साथ उनके शिष्यगण भी उनके साथ महावीर के मार्ग पर हो लिए थे। गौतम अपनी योग्यता से महावीर के प्रमुख शिष्य व प्रथम गणधर बने । इन्द्र का मनोरथ सफल हो चुका था। चिरप्रतीक्षित भगवान की दिव्यध्वनि का आस्वादन सबको मिल चुका था। दिव्यवाणी को सुनकर समस्त प्राणीजगत हर्षायमान था। सबको इन्द्रभूति गौतम के प्रति विशेष भक्ति उमड़ रही थी; क्योंकि उनके शुभागमन पर प्रभु की वाणी खिरी थी। 'गौतम ने कहा - 'कोई भी कार्य काललब्धि आने पर भवितव्यानुसार ही होता है, उस काल में तदनुकूल पुरुषार्थ पूर्वक उद्यम भी होता है तथा अनुकूल निमित्त भी उपस्थित रहता ही है। मेरे अभाव के कारण प्रभु की वाणी रुकी और मेरे आने के कारण खिरी, यह दोनों बातें मात्र उपचार से ही कही जा सकती हैं । वस्तुतः वाणी के खिरने का काल यही था, मेरे सद्धर्म की प्राप्ति का काल भी यही था। दोनों का सहज संयोग हो जाने पर यह उपचार से कहा जाने लगा।" ____ तीर्थंकर भगवान महावीर का सम्पूर्ण भारतवर्ष में लगभग तीस वर्ष तक धर्मोपदेश व विहार होता रहा। उनके विहार की अधिकता के कारण भारत का एक बहुत बड़ा भू-भाग ही 'बिहार' के नाम से जाना जाने लगा। बिहार प्रान्त के कई बड़े-बड़े नगर उनके नाम पर बसे । जिलास्थल वर्द्धमान, वीरभूमि उनके नाम पर ही बसे नगर हैं। उनके चिह्न के नाम पर भी सिंहभूमि नगर बसा है। 4 २३
SR No.008375
Book TitleSalaka Purush Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size1 MB
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