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________________ (३१६) श ला का भगवान महावीर की अन्तरोन्मुखी होने की मौन प्रेरणा पाकर इन्द्रभूति भी अन्तरोन्मुख हो गये, अन्तर | में चले गये और जब बाहर आये तब उनके चेहरे पर अपूर्व शान्ति झलक रही थी। उन्होंने आज वह पा लिया था, जो आज तक नहीं पाया था । वे आत्मा का अनुभव कर चुके थे, उन्होंने प्रभु के समक्ष उसी समय दीक्षा धारण कर ली तथा अन्तर के प्रबल पुरुषार्थ द्वारा मन:पर्यय ज्ञान प्राप्त किया । पु रु pm IF 59 ष उ त्त रा पर की खोज में इतना व्यस्त हो रहा है कि मैं कौन हूँ? मैं क्या हूँ ? जानने का अवसर ही प्राप्त नहीं हुआ । | एक बार अपनी ओर देख । जानने-देखने लायक एकमात्र अपना आत्मा ही है । " र्द्ध की कृपा से उनका हृदय भगवान महावीर के अनन्त उपकार से गद्गद् हो रहा था; क्योंकि उन्हें प्रभु संसार का अभाव करनेवाला सद्धर्म प्राप्त हो गया था । उनके सागरवत् हृदय में भक्ति का भाव उमड़ रहा | था । उनकी वाणी प्रस्फुटित हो उठी और वे इसप्रकार भगवान की स्तुति करने लगे - हे प्रभो! जो व्यक्ति आपके इस वैभव को जानते - पहिचानते हैं, वस्तुतः वे ही आपको जानते हैं, अन्य | तो गतानुगतिक लोग हैं। राजा आया तो उसके साथ कर्मचारी भी आ गए, बाह्य-विभूति देखकर चकित रह गये, नत-मस्तक भी हो गये और आपसे भोगों की भीख माँगने लगे, आपको भोगों का दाता मानने | लगे, भक्ति के आवेग में आपको भोगदाता, वैभवदाता, कर्ता हर्ता बताने लगे । हे भगवन्! वस्तुतः वे आपके भगत नहीं, भोगों के भगत हैं। उनके लिए भोग ही सबकुछ हैं, भोग ही भगवान हैं। वे आपके ही चरणों में नहीं, जहाँ भी भोगों की उपलब्धि प्रतीत करेंगे, वहीं झुकेंगे। हे प्रभो! कितने आश्चर्य की बात है कि जिन भोगों को तुच्छ जानकर आपने स्वयं त्याग दिया है, वे उन्हें ही इष्ट मान रहे हैं और आपसे ही उनकी माँग कर रहे हैं, आपको ही उनका दाता बता रहे हैं । ती र्थं क र म hom र हे प्रभो! जो व्यक्ति आपके इस वीतरागी-सर्वज्ञ स्वभाव को भलीप्रकार जान लेता है, पहिचान लेता है, वह अपने आत्मा को भी जान लेता है, पहिचान लेता है और उसका मोह (मिथ्यात्व) अवश्य नष्ट हो पर्व | जाता है । वह अन्तरोन्मुखी पुरुषार्थ द्वारा चारित्र - मोह का भी क्रमशः नाश करता जाता है और कालान्तर २३
SR No.008375
Book TitleSalaka Purush Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size1 MB
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