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३१. उनकी सौम्य मूर्ति, स्वाभाविक सरलता, अहिंसामय जीवन एवं शान्त स्वभाव को देखकर बहुधा वन्य || पशु भी स्वभावगत वैर-विरोध छोड़कर साम्यभाव धारण करते थे। अहि-नकुल तथा गाय और शेर तक भी एक घाट पानी पीते थे। जहाँ वे ठहरते, वातावरण सहज शान्तिमय हो जाता था।
कभी कदाचित भोजन का विकल्प उठता तो अनेक अटपटी प्रतिज्ञायें लेकर वे भोजन के लिए समीपस्थ नगर की ओर जाते । यदि कोई श्रावक उनकी प्रतिज्ञाओं के अनुरूप शुद्ध सात्त्विक आहार नवधा| भक्तिपूर्वक देता तो अत्यन्त सावधानीपूर्वक निरीह भाव से खड़े-खड़े आहार ग्रहण कर शीघ्र वन को वापिस चले जाते । साधु होने के बाद सर्वप्रथम उनका आहार कुलग्राम नगर के राजा कूल के यहाँ हुआ था। एक बार मुनिराज महावीर का आहार विपन्नावस्था को प्राप्त सती चंदनबाला के हाथ से भी हुआ था।
सती चंदनबाला राजा चेटक की सबसे छोटी पुत्री थी। किसी कामातुर विद्याधर द्वारा उपवन में खेलती चंदनबाला का अपहरण कर लिया गया था, किन्तु पत्नी के आ जाने से वह पत्नीभीरू विद्याधर के द्वारा भयंकर वन में छोड़ दी गई। वहाँ वह वृषभदत्त नामक सेठ को मिल गई। वृषभदत्त सेठ की पत्नी सुभद्रा स्वभाव से शंकालु होने से आशंकित हो गई कि कहीं सेठ इस पर मोहित न हो जाय । पुत्रीवत् चंदना उसे सपत्नी-सी प्रतीत होने लगी। उसका व्यवहार चंदना के प्रति कठोर हो गया।
एक दिन मुनिराज वर्द्धमान वत्स देश की उसी कौशाम्बी नगरी में आहार के लिए आये जहाँ चन्दना बन्धन में थी। मुनिराज उस मकान के सामने से निकले। जिसमें चन्दना कैदी का सा जीवन व्यतीत कर रही थी। चन्दना के तो भाग्य खुल गये । नग्न-दिगम्बर मुनिराज को देखकर वह पुलकित हो उठी, मुनिराज की वन्दना को वह एकदम दौड़ पड़ी। वह भक्ति और भावुकता के उन क्षणों में यह भूल ही गई थी कि मैं बंधी हुई हूँ। वह ऐसे दौड़ी जैसे बंधी न हो। यह दृश्य देखकर लोगों के आश्चर्य का ठिकाना न रहा कि सचमुच उसकी बेड़िया टूट चुकी थीं और उसके मुड़े हुए शिर पर बाल आ गये थे और वह चन्दना वन्दना में लीन थी। उसको ध्यान ही न रहा कि प्रभु को भोजन के लिए पड़गाहन तो कर रही हूँ, पर || २३
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