________________
GREE FOR "FF 0
“जब कोई व्यक्ति जिनेन्द्रदेव के दर्शनार्थ जाने का मन में विचार करता है, तब वह उस विचार मात्र | में एक उपवास के फल को प्राप्त कर लेता है तथा जब वह चलने को तैयार होता है तो उसके परिणाम | और अधिक विशुद्ध होने से वह दो उपवास के फल का भागी होता है। और जब वह गमन करने का उपक्रम | करता है, तब उसे तीन उपवास जितना पुण्यलाभ होता है । गमन करने पर चार उपवास का, मार्ग में पहुँचने | पर एक पक्ष के उपवास का, जिनालय के दर्शन होने पर एक मास के उपवास का, जिनालय में पहुँचने पर छह मास के उपवास का, मन्दिर की देहली पर पहुँचते ही एक वर्ष का जिनेन्द्र की प्रदक्षिणा करने पर सौ उपवास का, नेत्रों से साक्षात् जिनेन्द्र के दर्शन करने पर हजार उपवास का फल मिलता है।" | इसप्रकार हम देखते हैं कि जिनबिम्बदर्शन या देवदर्शन की महिमा गाते-गाते हमारे आचार्य कभी थकेंगे || नहीं। समन्तभद्र जैसे तर्क शिरोमणि आचार्यों की हृदय-वीणा के तार भक्ति रस में ओत-प्रोत होंगे और | स्वयंभूस्तोत्र, देवागमस्तोत्र व जिनस्तवन स्तोत्र के रूप में झनझना उठेंगे। | जो अरहंत भगवान को द्रव्य-गुण-पर्याय से पहचानता है, वही अपने आत्मा के स्वरूप को जानता | है तथा अरहंत परमात्मा व अपने आत्मा के स्वरूप को जाननेवालों का मोह नष्ट हो जाता है, वह सम्यग्दर्शन प्राप्त कर मोक्षमार्ग का पथिक बन जाता है।
सभी जीव जिनदर्शन की यथार्थ महिमा को जानकर, उसके प्रयोजन को पहचानकर उसके अवलम्बन से अपने आत्मा को जाने-पहचानें और अपना कल्याण करें।
हम सब जिनदर्शन के माध्यम से निजदर्शन का सुफल प्राप्त करें, तभी हमारा जिनदर्शन करना सार्थक होगा। कविगण जिनबिम्ब दर्शन करने का वास्तविक फल निरूपित करते आये हैं और करते रहेंगे। किसी कवि ने कहा है -
"मिट गयो तिमिर मिथ्यात्व मेरो, उदय रवि आतम भयो। मो उर हरख ऐसो भयो, मानो रंक चिन्तामणि लयो ।।
4E Rs