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ये जिनेन्द्रं न पश्यन्ति, पूजयन्ति स्तुवन्ति न।
निष्फलं जीवनं तेषां, तेषां धिक् च गृहाश्रमम् ।। जो प्रतिदिन श्रीजिनेन्द्र का दर्शन और स्तवन नहीं करते, उनका जीवन निष्फल है और उनका गृहस्थाश्रम धिक्कार है। इसी बात की पुष्टि में आगे कहेंगे कि - || "जो प्रतिदिन जिनेन्द्रदेव का दर्शन नहीं करते, उनके गुणों का स्मरण नहीं करते, पूजन स्तवन नहीं करते | तथा मुनिजनों को दान नहीं देते, उनका गृहस्थाश्रम में रहना पत्थर की नाव के समान है। वे गहरे भवसमुद्र
में डूबते हैं-नष्ट होते हैं।" | जिनेन्द्र का भक्त सदा यही भावना भाता है कि मेरे हृदय में सदैव जिनदेव की भक्ति बनी रहे; क्योंकि | यह सम्यक्त्व एवं मोक्ष का भी कारण है। भगवान जिनेन्द्रदेव की भक्ति मेरे हृदय में सदा उत्पन्न हो; क्योंकि
यह संसार का नाश करनेवाले और मोक्ष प्राप्त करानेवाले सम्यग्दर्शन को प्राप्त कराने में सनिमित्त है। | श्री अभ्रदेव विरचितः व्रतोद्योतन श्रावकाचार देखना, उसमें लिखा मिलेगा कि -
"भव्य जीवों के द्वारा प्रात: उठकर अपने शरीर की उत्तम प्रकार से शुद्धि करके जिनबिम्ब के दर्शन किए | जाते हैं; क्योंकि जो जीव प्रतिदिन प्रात:काल शारीरिक शुद्धि करके सर्वप्रथम जिनबिम्ब का दर्शन करते हैं, वे भव्य अल्पकाल में मुक्ति प्राप्त करेंगे।" इसी बात को पुष्ट करते हुए आगे कहा गया होगा कि
“जो भव्य जीव जिनस्तवन करके, सामयिक की शुद्धि करके, पंचकल्याण की स्तुति करके, पंचनमस्कार | सं मंत्र को हृदय में धारण करके, चैतन्यस्तुति करके, सिद्धभक्ति करके श्रुत व गुरु की भक्ति करता है, वह सांसारिक सुख को प्राप्त करता हुआ मोक्षसुख को प्राप्त करता है।
जो जीव प्रतिदिन जिनदेव के भक्ति पूर्वक दर्शन करते हैं, पूजन करते हैं, स्तुति करते हैं; वे तीनों लोकों में दर्शनीय, पूजनीय और स्तवन करने योग्य होते हैं।"
जब चिन्तो तब सहस फल, लक्खा गमन करेय । कोड़ा-कोड़ी अनन्त फल, जब जिनवर दरसे य ।।