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________________ REFEN FEV || के विषयों में सुख है ही नहीं। चक्रवर्ती की संपदा पाकर भी यह जीव सुखी नहीं हो पाया। ज्ञानी जीवों || की दृष्टि में चक्रवर्ती की सम्पत्ति की कोई कीमत नहीं है, वे उसे जीर्ण तृण के समान त्याग देते हैं और | अन्तर में समा जाते हैं। अन्तर में जो अनन्त आनन्दमय महिमावंत परम पदार्थ विद्यमान है, उसके सामने बाहा विभूति की कोई महिमा नहीं।" जिनेन्द्र भगवान की सहज वैराग्योत्पादक एवं अन्तरोन्मुखी वृत्ति की प्रेरणा देनेवाली दिव्य वाणी को सुनकर भगवान महावीर के पाँचवें पूर्वभव का जीव चक्रवर्ती प्रियमित्र का वैराग्य इस प्रकार जाग गया; जिसप्रकार एक शेर की गर्जना सुनकर दूसरा शेर जाग जाता है। राज्य-सम्पदा, स्त्री-पुत्रादि संबंधी राग टूट गया। जिस धरती को वर्षों में दिग्विजय करके प्राप्त की थी, जिन पत्नियों का अनुरागपूर्वक पाणिग्रहण किया; उन्हें ऐसे छोड़ दिया मानो उनसे उनका कोई संबंध ही न था, वे उनकी कोई थी ही नहीं। जिस राग ने जमीन को जीता था, जिस राग ने राजकन्याओं के साथ विवाह किया, जब वह राग ही न रहा, तो | रागजनित संयोग कैसे रहते? ____ छह खण्ड की विभूति को तृण के समान त्याग देनेवाले प्रियमित्र मुनिराज ने जब समाधिपूर्वक देह छोड़ी तो सह्रसार नामक बारहवें स्वर्ग में सूर्यप्रभ नामक ऋद्धिधारी देव हुए। यह भगवान महावीर का चौथा पूर्वभव था। वहाँ से आकर जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में छत्रपुर नगर के राजा नन्दिवर्धन की वीरमती नामक रानी से तीसरे पूर्वभव में नन्द नामक पुत्र हुए। पूर्वसंस्कारवश जन्म से ही वैराग्यवृत्ति धारण करनेवाला राजा नन्द एक दिन प्रोष्ठिल नामक मुनिराज के पास दर्शनार्थ गया और जिसप्रकार स्वयं प्रज्वलित अग्नि घी पड़ जाने पर और अधिक वेग से प्रज्वलित हो उठती है; उसीप्रकार वैराग्यप्रकृति राजा नन्द का वैराग्य मुनिराज के वैराग्योत्पादक उपदेश से और भी बढ़ गया और उसने उन्हीं मुनिराज से दीक्षा धारण कर ली। निरन्तर आत्मध्यान और तत्त्वाभ्यास में ही लगे रहने वाले मुनिराज नन्द ग्यारह अंगों के पारगामी विद्वान || २३ Es For F|
SR No.008375
Book TitleSalaka Purush Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size1 MB
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