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________________ BREEFFFFy बहुत काल बाद भाग्यवश वहाँ से पुनः उभरा और स्थावर नामक ब्राह्मण हुआ, शुभ-भावपूर्वक मरण | कर माहेन्द्र नामक चतुर्थ स्वर्ग का देव हुआ। वहाँ से चयकर वह राजगृह नगर में विश्वभूति नामक राजा के यहाँ विश्वनंदी नामक राजकुमार हुआ। | राजा विश्वभूति के छोटे भाई का नाम विशाखभूति था और विशाखभूति के छोटे पुत्र का नाम विशाखनंद | था। शरद ऋतु के बादलों को नष्ट होते देखकर राजा विश्वभूति को वैराग्य हो गया और वे अपने छोटे | भाई विशाखभूति को राजपद तथा पुत्र विश्वनंदी को युवराज पद देकर नग्न दिगम्बर साधु हो गये। विशाखनन्द के साथ हुई पारिवारिक उद्यान संबंधी घटना के निमित्त से विश्वनन्दी संसार से विरक्त | होकर मुनि हो गये। मुनिराज विश्वनंदी अन्तर्बाह्य घोर तपश्चरण करते हुए अत्यन्त कृषकाय हो गये। महातपस्वी वे मुनिराज एक बार मथुरा नगर में आहार के लिए गये। मार्ग में तत्काल प्रसूता गाय की ठोकर लगने से वे गिर गये। वहीं सामने एक वेश्या के मकान में उनका वह चचेरा भाई विशाखनंद, जिसके साथ उद्यान के कारण झगड़ा-विवाद हुआ था, उन्हें देख रहा था । विशाखनंद अपनी पुरुषार्थहीनता, अन्यायवृत्ति एवं कुकर्मों के कारण राजभ्रष्ट होकर अन्यत्र दूतकार्य करने लगा था और कार्यवश मथुरा आया हुआ था। उसने मुनिराज विश्वनंदी को पहचान लिया और उनका परिहास करते हुए व्यंग्य किया कि कहाँ गया तुम्हारा वह बल, जिसने वृक्ष को उखाड़ डाला था एवं पत्थर की विशाल शिला को मुष्टिका प्रहार से ही तोड़ डाला था। मुनिराज विश्वनन्दी का चित्त उसके व्यंग्य-बाणों को सहन न कर सका और विचलित हो गया। अत: उन्होंने यद्यपि उसके मानमर्दन का निदान किया, तथापि समाधिपूर्वक मरकर वे महाशुक्र नामक दसवें स्वर्ग में देव हुए। वहाँ से आकर वे इसी जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में पोदनपुर के राजा बाहुबली के वंश में उत्पन्न महाराजा प्रजापति की रानी मृगावती से त्रिपृष्ठ नामक पुत्र हुए तथा उनके काका विशाखभूति का जीव | उसी राजा प्रजापति की दूसरी रानी जयावती के उदर से विजय नामक पुत्र हुआ।
SR No.008375
Book TitleSalaka Purush Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size1 MB
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