________________
| था। किसी के पास विद्या सीखना तो उन्हें था ही नहीं, आत्मविद्या को जानने वाले उन भगवान में अन्य श | सर्व विद्याएँ भी स्वयमेव आ गई थीं।
युवा राजकुमार को देखकर एकबार माता-पिता ने उनसे विवाह का अनुरोध किया और कहा कि किसी सुन्दर, गुणवान राज कन्या के साथ वे विवाह करें, परन्तु पार्श्वकुमार ने अनिच्छा प्रदर्शित की। माताजी | ने गद्गद् होकर कहा "हे कुमार! मैं जानती हूँ कि तुम्हारा अवतार वैराग्य हेतु है, तुम तीर्थंकर होने वाले | हो, और उससे मैं अपनी कोख को धन्य मानती हूँ, परन्तु पूर्वकाल में ऋषभादि तीर्थंकरों ने भी विवाह
करके जिसप्रकार माता-पिता की इच्छा पूर्ण की थी, तदनुसार तुम भी हमारी इच्छा पूर्ण करो।" | तब पार्श्वकुमार बोले - “हे माता! ऋषभदेव की बात और थी, मैं प्रत्येक विषय में उनके बराबर नहीं हूँ, उनकी आयु तो बड़ी लम्बी थी और मेरी आयु मात्र सौ वर्ष की है, मुझे तो अल्पकाल में ही संयम धारण करके अपनी आत्मसाधना पूर्ण करना है, इसलिये मुझे सांसारिक बंधनों में पड़ना उचित नहीं है।'
एक बार पार्श्वकुमार वनविहार करने निकले। साथ में उनका मित्र सुभोमकुमार भी था। पार्श्वकुमार को देखकर प्रजा अति प्रसन्न होती थी। वन के पशु-पक्षी भी प्रभु को देखकर आश्चर्य में पड़ जाते और उन्हें शांतचित्त से निरखते थे। जब पार्श्वकुमार वन में विचर रहे थे कि तभी एक घटना हुई।
पार्श्वकुमार का नाना राजा महीपाल रानी का देहान्त हो जाने से तापस हो गया था। सात सौ तापस उसके शिष्य थे। वह वाराणसी में पंचाग्नि तप कर रहा था, अग्नि में बड़े-बड़े लक्कड़ जल रहे थे। इतने में पार्श्वकुमार अपने मित्रों सहित वन-विहार करते-करते वहाँ जा पहुंचे। उन्होंने महिपाल तापस को नमस्कार नहीं किया; इसकारण तथा पूर्वभव के संस्कार वश उन्हें देखकर उस तापस को क्रोध आ गया। उसीसमय पार्श्वकुमार के मित्र सुभोमकुमार उससे बोले कि - "हे तापस ! क्या आपको यह ज्ञात है कि आप जो यह पंचाग्नि तप कर रहे हैं उसमें हिंसा के कारण जीव का कितना अहित होता है?
सुभोमकुमार की बात सुनकर महिपाल को और अधिक क्रोध आया। क्रोधावेश में वह कहने लगा - || २२