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________________ २८८ sarp च 1 al ब अ अ च ला का र्द्ध थी। जो दोनों सहोदर भ्राता थे, उनमें से एक ने तो बाईस सागर तक स्वर्ग के सुख भोगे तथा दूसरा उतने | ही काल तक नरक के दुःख सहन करके दोनों मनुष्य लोक में उत्पन्न हुए, उनमें से एक तो वज्रनाभि चक्रवर्ती हुआ और दूसरा शिकारी भील हुआ । चक्रवर्ती का अद्भुत वैभव होने पर भी वे वज्रनाभि जानते थे कि इस समस्त बाह्य वैभव की अपेक्षा | हमारा अनन्त चैतन्य वैभव भिन्न प्रकार का है, वही सुख का दातार है, बाह्य का कोई वैभव सुख देनेवाला नहीं है, उसमें तो आकुलता है । पुण्य से प्राप्त बाह्य वैभव तो अल्पकाल ही रहनेवाला है, और हमारा आत्मवैभव अनन्तकाल तक साथ रहेगा। सम्यग्दर्शनरूपी सुदर्शनचक्र द्वारा मोह को जीतकर मैं मोक्षसाम्राज्य प्राप्त करूँगा, वही मेरा सच्चा साम्राज्य है। ऐसी प्रतीति सहित वे जगत से उदास थे - चक्रवर्ती राज्य में रहने पर भी अन्तर में अद्भुत ज्ञान परिणति सहित वे प्रतिदिन अरिहंतदेव की पूजा, मुनिवरों की सेवा, शास्त्रस्वाध्याय, सामायिकादि क्रियाएँ करते थे । इसप्रकार धर्म संस्कारों से परिपूर्ण उनका जीवन अन्य जीवों को भी आदर्श रूप था । एकबार उनकी नगरी में क्षेमंकर मुनिराज पधारे, उनकी मुद्रा प्रशमरस झरती - वीतरागी थी और वे अवधिज्ञान के धारी थे। वज्रनाभि चक्रवर्ती उनके दर्शन करने गये और उन्हें देखते ही उनके नेत्रों से आनन्द उमड़ने लगा । उन्हें ऐसा लगा कि वीतरागी तीन रत्नों के समक्ष यह चक्रवर्ती के चौदहरत्न बिलकुल तुच्छ हैं ! उन्होंने मुनिराज की वन्दना एवं स्तवन करके आत्महित का उपदेश सुनने की जिज्ञासा प्रकट की । तब मुनिराज ने उनको मोक्षमार्ग का अलौकिक उपदेश दिया, निश्चय सम्यग्दर्शन - ज्ञान - चारित्र का स्वरूप समझाया, जो स्वतंत्ररूप से आत्मा में, आत्मा के द्वारा ही प्रगट होता है और कहा कि मोक्ष हेतु | ऐसा वीतराग भाव ही कर्तव्य है । हे भव्य ! तुम इस संसार दुःख से छूटना चाहते हो तो ऐसी चारित्रदशा अंगीकार करो। राग आत्मा का स्वभाव नहीं है, राग तो दुःख है, इसलिये कहीं भी किंचित राग न करके, | वीतराग होकर भव्यजीव भवसमुद्र से पार होते हैं । हे राजन् ! तुम भी ऐसे वीतराग धर्म की साधना में तत्पर ती र्थं क र पा पूर्व ना थ पर्व २२
SR No.008375
Book TitleSalaka Purush Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size1 MB
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