SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 284
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हाथी सोचता है - "पूर्वकाल में आत्मा को जाने बिना आर्तध्यान करके मैंने पशुपर्याय पायी, परन्तु | अब इन मुनिराज के निमित्त और मेरी भली होनहार से मुझे आत्मज्ञान हुआ है, अब आत्मा के ध्यान द्वारा मैं शीघ्र परमात्मा होऊँगा।" ऐसा विचार कर वह हाथी ढूँढ झुका-झुकाकर मुनिराज को नमस्कार कर रहा था। | मुनिराज के पास धर्म का उपदेश सुनकर अनेक जीवों ने व्रत धारण किये । हाथी को भी भावना जाग्रत हुई कि यदि मैं मनुष्य होता तो मैं भी उत्तम मुनिधर्म अंगीकार करता, इसप्रकार मुनिधर्म की भावनासहित उसने श्रावक धर्म अंगीकार किया। मुनिराज के चरणों में नमस्कार करके उसने पाँच अणुव्रत धारण किये। सम्यग्दर्शन प्राप्त करके व्रतधारी हुआ वह वज्रघोष हाथी बारम्बार मस्तक झुकाकर अरविन्द मुनिराज को नमन करने लगा, सूंढ ऊँची-नीची करके उपकार मानने लगा। हाथी की ऐसी धर्मचेष्टा देखकर श्रावक बहुत संतुष्ट हुए और जब मुनिराज ने घोषणा की कि यह हाथी का जीव आत्मोन्नति करते-करते भरत क्षेत्र में तेईसवाँ तीर्थंकर होगा तब तो सबको अत्यन्त हर्ष हुआ। हाथी को धर्मात्मा जानकर श्रावक उसे प्रेमपूर्वक निर्दोष आहार देने लगे। यात्रासंघ ने कुछ समय उस वन में रुककर फिर सम्मेदशिखर की ओर प्रस्थान किया। अरविन्द मुनिराज भी संघ के साथ विहार करने लगे तब वह हाथी भी विनयपूर्वक अपने गुरु को विदा करने हेतु कुछ दूर तक पीछे-पीछे चलता रहा अंत में मुनिराज को पुनः पुनः वंदन करके अपने वन की ओर लौट चला। अब, वह पाँच व्रतों सहित निर्दोष जीवन जी रहा था, स्वयं जिस शुद्ध आत्मा का अनुभव किया, || उसकी बारम्बार भावना करता था। किसी भी जीव को सताता नहीं था, जिसमें त्रसहिंसा हो ऐसा आहार नहीं करता, शांतभाव से रहकर सूखे हुए घास-पत्ते खाता था, कभी-कभी उपवास भी करता था। चलते समय देख-देखकर पाँव रखता था, हथिनियों का संघ उसने छोड़ दिया था। विशाल शरीर के कारण अन्य जीवों को कष्ट न हो इसलिए वह शरीर का बहुत हलन-चलन नहीं करता, वन के अन्य प्राणियों के साथ || २२
SR No.008375
Book TitleSalaka Purush Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy