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चिल्लाते और हाहाकार करते इधर-उधर दौड़ रहे थे। कितनों को उसने पैरों से कुचला तो कितनों को सूढ़ || में उठा-उठाकर पछाड़ दिया। रथों को तोड़ डाला और वृक्षों को उखाड़ दिया। अनेक लोग भयभीत होकर | रक्षा हेतु मुनिराज की शरण में जा पहुंचे। | पागल हाथी चारों ओर हाहाकार मचाता हुआ, चिंघाड़ता हुआ उधर आया जहाँ अरविन्द मुनिराज विराजते थे। लोग डरके मारे कांप उठे कि न जाने यह पागल हाथी मुनिराज को क्या कर डालेगा? मुनिराज तो शांत होकर बैठे थे। उन्हें देखते ही वह हाथी ढूँढ़ उठाकर उनकी ओर दौड़ा तो; परन्तु... अरविन्द मुनिराज के वक्ष में एक चिह्न को देखते ही वह एकदम शांत हो गया, उसे लगा कि अरे, इन्हें मैंने कहीं देखा है? यह तो मेरे कोई परिचित और हितैषी लगते हैं। ऐसा विचारते हुए वह एकदम शांत खड़ा रहा, उसका पागलपन मिट गया और मुनिराज के सन्मुख ढूँढ झुकाकार बैठ गया।
लोग आश्चर्यचकित होकर देख रहे थे कि अरे, मुनिराज के सामने आते ही इसे क्या हो गया? इस घटना से प्रभावित लोग मुनिराज के आसपास एकत्रित हो गये। मुनिराज ने अवधिज्ञान द्वारा हाथी के पूर्वजन्म को जान लिया और शांत बैठे हुए हाथी को सम्बोधन कहा - अरे, गजराज, पूर्वभव में तू हमारा मंत्री मरुभूति और मैं राजा अरविन्द था। मैं तो मुनि हुआ हूँ और तू मेरा मंत्री होकर भी आत्मा को भूला और आर्तध्यान करने से तुझे पशु पर्याय प्राप्त हुई अब चेत और आत्मा की पहिचान कर!
मुनिराज के सम्बोधन से उसे वैराग्य हो गया और अपने पूर्वभव का जातिस्मरण ज्ञान हुआ। अपने दुष्कर्म के लिए उसे पश्चाताप होने लगा, उसकी आँखों में अश्रुधारा बहने लगी, वह विनयपूर्वक मस्तक झुकाकर मुनिराज के सन्मुख देख रहा था। प्राकृतिक रूप से उसका ज्ञान इतना विकसित हुआ कि वह मनुष्य की भाषा समझने लगा, और उसे मुनिराज की वाणी सुनने की जिज्ञासा जाग्रत हो उठी।
मुनिराज ने जब जाना कि इस हाथी के परिणाम विशुद्ध हुए हैं, इसे आत्मा समझने की तीव्र जिज्ञासा | जाग्रत हुई है और यह तो एक भावी तीर्थंकर है तब अत्यन्त वात्सल्यपूर्वक वे हाथी को उपदेश देने लगे || २२
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