SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 281
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ REFFEE IFE 19 || ऐसे अस्थिर इन्द्रियविषयों में दिन-रात लगे रहना यह जीव को शोभा नहीं देता। यह शरीर नाशवान है और |यह भोग भवरोग को बढ़ानेवाले हैं। जिसे अपना हित करना हो उसे इन भोगों की लालसा में जीवन गंवाना | उचित नहीं है। जिसप्रकार यह मेघ रचना क्षणभर में बिखर गई, उसीप्रकार मैं भी अविलम्ब इस संसार को | छोड़कर मुनि बनूँगा और आत्मध्यान द्वारा कर्मरूपी बादलों को बिखेर दूंगा।" इसप्रकार अत्यन्त वैराग्यपूर्वक राजपाट छोड़कर राजा अरविन्द वन में चले गये और निर्ग्रन्थ गुरु के निकट दीक्षा लेकर मुनि हुए। इन्हीं अरविन्द मुनिराज द्वारा हाथी आत्मज्ञान प्राप्त करता है। ___ सम्मेदशिखर की यात्रा हेतु एक विशाल संघ चला जा रहा था। उस यात्रासंघ में अनेक मुनि तथा हजारों श्रावक थे। अरविन्द मुनिराज भी संघ के साथ विहार कर रहे थे। वे यात्रियों को धर्म उपदेश देते हैं और आत्मा का स्वरूप समझाते हैं, जिसे सुनकर सबको बड़ा ही आनन्द होता है। कभी भक्तिभावपूर्वक मुनिराज को आहारदान देने का अवसर प्राप्त होने से श्रावकों को महान हर्ष होता है। इसप्रकार धार्मिक लाभ लेते हुए समस्त साधर्मीजन परस्पर धर्मचर्चा और पंचपरमेष्ठी का गुणगान करते हुए सम्मेदशिखर की ओर चले जा रहे थे। चलते-चलते उस संघ ने एक वन में पड़ाव डाला। शांत सुन्दर वन हजारों मनुष्यों के कोलाहल से गूंज उठा। जंगल में मानो एक नगर बस गया। मुनिराज अरविन्द एक वृक्ष के नीचे आत्मध्यान में बैठ गये। इतने में एक घटना घटी। ___ एक विशाल हाथी पागल होकर इधर-उधर दौड़ने लगा, जिससे लोगों में भगदड़ मच गई। वह हाथी और कोई नहीं, पार्श्वनाथ का ही जीव था । वह हाथी उस वन का राजा था और स्वच्छन्द होकर विचरण करता था। वन में एक सरोवर था, जिसमें यह प्रतिदिन स्नान करता था, वन के मिष्ठ फल-फूल खाता था और हथिनियों के साथ क्रीड़ा करता था। घने निर्जन वन में इतने अधिक मनुष्य और वाहन उस हाथी | पर्व || ने कभी देखे नहीं थे, इसलिए वह एकदम भड़क उठा और पागल होकर लोगों को कुचलने लगा। लोग || २२ EFFEE
SR No.008375
Book TitleSalaka Purush Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy