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________________ (२७९ श राजा ने कमठ को नगर से निष्कासित कर दिया, जिससे वह बड़ा दुःखी हुआ और तापस लोगों के मठ पर जाकर वहाँ बाबा बनकर रहने लगा। उसे कुछ ज्ञान-वैराग्य तो था नहीं । अज्ञान और क्रोध के कारण | वह एक बड़ा पत्थर हाथों में उठाकर खड़े-खड़े तप करने लगा और उसी में धर्म मानने लगा । ला का पु रु ष युद्ध में गया मरुभूति जब लौटकर आया और उसे ज्ञात हुआ कि उसके बड़े भाई कमठ को राजा ने नगर से निष्कासित कर दिया, तब उसे बड़ा दुःख हुआ । भाई पर क्रोध न करके मरुभूति ने उससे मिलने | तथा घर वापिस लाने का विचार किया और वह उसकी खोज करने निकल पड़ा। ढूँढते ढूँढते अन्त में उसे | कमठ का पता चल गया। उसका भाई साधु बनकर मिथ्या तप कर रहा है, यह देखकर उसे बहुत दुःख हुआ। वह कमठ के पास जाकर हाथ जोड़कर बोला- “हे भाई ! मुझे तुम्हारे बिना अच्छा नहीं लगता। जो हुआ सो हुआ, अब आप इस मिथ्या वेश को छोड़कर मेरे साथ घर लौट चलो। आप मेरे ज्येष्ठ भ्राता हो, इसलिए मुझ पर क्रोध न करके मुझे क्षमा कर दो।" ऐसा कहकर मरुभूति ने भाई कमठ को प्रणाम किया । उ IF 595 त्त रा र्द्ध परन्तु दुष्ट कमठ का क्रोध तो और भी बढ़ गया। उसने सोचा "इसी के कारण मैं इतना अपमानित हुआ हूँ और अब यहाँ भी मुझे दुःखी करने आया है।" ऐसा विचार कर उसने हाथों में उठाये हुए पत्थर | का प्रहार मरुभूति के सिर पर ऐसा किया कि पत्थर लगते ही मरुभूति का प्राणान्त हो गया । क्रोध के कारण | सगे भाई की मृत्यु हुई। जिसप्रकार सर्प से कभी अमृत प्राप्त नहीं होता, उसीप्रकार क्रोध से कभी सुख नहीं मिलता । क्षमा जीव का स्वभाव है, उसके सेवन से ही सुख की प्राप्ति होती है । पत्थर के प्रहार से जब मरुभूति की मृत्यु हुई तो उसे भी भयंकर वेदना के कारण आर्तध्यान हो गया; अभी उसे आत्मज्ञान तो हुआ नहीं था, इसलिए आर्तध्यान से मरकर वह सम्मेदशिखर के निकट वन में | विशाल हाथी हुआ । कमठ ने अपने भाई को पत्थर से मार डाला, यह बात जब आश्रम के तापसों ने जानी तब उन्होंने कमठ को पापी मानकर उसे वहाँ से निकाल दिया। पापी कमठ चोरों के गिरोह में सम्मिलित होकर चोरी करने ती र्थं क र पा पूर्व ना थ पर्व २२
SR No.008375
Book TitleSalaka Purush Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size1 MB
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